आज यह स्वीकार कर लिया गया है कि शिक्षित समाज मानव सभ्यता के विकास का मानदंड निश्चित करता है। आज शिक्षा की सफलता रोजगार पाने में है। बड़े-बड़े संस्थान आंकड़े जारी करके दावा करते हैं कि उनके संस्थान के कितने छात्रों को रोजगार मिला। माना कि यह शिक्षा रोजगार तो दिला सकती है, किन्तु ज्ञानवान भी बनाती है, इसमें संदेह है।
ज्ञान का सम्बन्ध आत्मिक चेतना से है, जो मनुष्य के चरित्र में गुणात्मक परिवर्तन लाती है। ज्ञान मनुष्य के मस्तिष्क को ही नहीं आत्मा को जगाता है, जिससे मन में यह जानने की जिज्ञासा पैदा होती है कि मैं कौन हूं, मनुष्य जब तक स्वयं को नहीं जानेगा कि मैं कौन हूं? उसके जीवन का उद्देश्य क्या है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का मार्ग क्या है? जब तक वह यह कैसे निश्चित करेगा कि उसे जीवन को किस मार्ग पर ले चलना है।
अपने मूल की खोज कर लेना ही ब्रह्मांड को जान लेना है। परमात्मा यदि कण-कण में है तो मनुष्य के अंदर भी है। उसे पा लेना ही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है।
धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा आदि लक्ष्य तो मनुष्य ने स्वयं अपनी बुद्धि से निश्चित किये हैं, जो विकारों के प्रभाव में है। ज्ञान मनुष्य को विकारों के प्रभाव से मुक्त कर बुद्धि को निर्मल करता है, तभी जीवन की राह और वास्तविक लक्ष्य दिखाई देते हैं।