आज गुरू पूर्णिमा के दिवस पर हम गुरू के उपकारों का स्मरण करते हैं, उनके सद्-परामर्शों और दिशा-निर्देशन के महत्व का स्मरण करते हैं, क्योंकि गुरू-शिष्य की हर उलझी समस्या का समाधान करते हैं। महाभारत में श्री कृष्ण ने अर्जुन को न केवल उपदेश दिया, बल्कि प्रत्येक समय उन्हें उचित निर्देश दिया, उनका मार्गदर्शन किया, जब अर्जुन दिग्भ्रमित नजर आये। गुरू के मुख से निकला हर शब्द ब्रह्म होता है, जो सत्य की गहराई से निकलता है। अपनी महत्ता के कारण गुरू को ईश्वर से भी ऊंचा पद दिया गया है। शास्त्रों में गुरू को ईश्वर के विभिन्न रूपो-ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरू को ब्रह्म इसलिए कहा गया, क्योंकि वह शिष्य को नया जन्म देते हैं। गुरू विष्णु भी हैं क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करते हैं। महेश्वर है, क्योंकि शिष्य के सभी दोषों का संहार करते हैं। उपनिषद का ऋषि कहता है कि गुरू के प्राण शिष्य में और शिष्य के प्राण गुरू में बसते हैं। गुरू-शिष्य को जीवन जीने की कला सिखाते हैं। आज के समय में एक बार पुन: गुरू-शिष्य परम्परा की अनन्त: श्रृंखला को कायम रखने की महती आवश्यकता है।