प्राय: कुछ लोगों को कहते सुना जाता है कि ‘मनुष्य वक्त के हाथों मजबूर है। वक्त जैसा चाहता है वैसा ही आदमी से कराता है। पुरूषार्थ और परिश्रम की बात करना व्यर्थ है। आदमी अपनी मर्जी से नहीं वक्त की मर्जी से करता है। यह निकृष्ट विचार प्रमादियों के द्वारा ही व्यक्त किया जाता है। महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से अनेक प्रश्र किये थे और भीष्म ने उनके उत्तर भी दिये थे। युधिष्ठिर ने पूछा कि समय मनुष्य को बनाता है, बिगाडता है या समय मनुष्य के हाथों में है। भीष्म ने उत्तर दिया कि समय को बनाने वाला मनुष्य है न कि मनुष्य को बनाने वाला समय है। आचारवान मनुष्य ही समय का निर्माण किया करते हैं, यदि समय ही जैसा चाहे मनुष्य को बना दिया करता तो फिर मनुष्य पर कर्म का उत्तरदायित्व कैसे थोपा जा सकता है। एक अन्य विद्वान का कथन है कि समय घटनाओं का निर्माता नहीं होता वरन घटनाएं समय का निर्माण करती हैं और घटनाएं मनुष्य के कर्म से घटती हैं, जो लोग संसार में कुछ विशेष करके अपना नाम ऊंचा किया करते हैं वे ही समय के निर्माता हुआ करते हैं। गौतमबुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, दयानन्द और विवेकानन्द का निर्माण समय ने नहीं किया वरन वे ही समय के निर्माता रहे हैं।