संसार में मनुष्य सहित पशु-पक्षी आदि भिन्न-भिन्न योनियां हैं। उन सभी में हम असंख्य बार जा चुके हैं। इस जन्म में भी हम मृत्यु के पश्चात ईश्वर की व्यवस्था जाति आयु भोग के अनुसार नया जन्म प्राप्त करेंगे। हमारे शुभ कर्मों से हमें इस जन्म में भी सुख मिलेगा और पर जन्म में भी। इस जन्म में अशुभ कर्म करने पर हमारा यह जीवन भी सुख शान्ति भंग करने वाला हो सकता है और आने वाला जन्म तो अशांत होगा ही। बहुत से लोग अच्छे-बुरे दोनों प्रकार के कर्म करते हैं फिर भी सुखी रहते हैं। उसका कारण यह है कि वे पूर्वकृत शुभ कर्मों के कारण सुखी हैं। इस जन्म के बुरे कार्यों के परिणाम अवश्यमेव दुख, कपट, पीड़ा होना है। वह जब मिलेगा तो मनुष्य त्राहि-त्राहि करेगा। ट्रामा सेंटरों, अस्पतालों में जाकर इस सच्चाई की पुष्टि की जा सकती है। ईश्वर न करे हममें से किसी को ऐसी विकट स्थिति से न गुजरना पड़े। इसलिए ईश्वरोपासना, यज्ञ एवं परोपकार आदि कर्मों को ही करना आवश्यक है। अत: मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति और सद्कर्मों के प्रति सावधान रहना चाहिए। उसे सतशास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए। उनकी शिक्षाओं का बुद्धि की कसौटी पर कसकर उन पर आचरण करना चाहिए, जिससे इस जन्म और पर जन्म में सुख एवं शान्ति की प्राप्ति हो।