आज राजनीति दिशाहीन हो गई है, धर्म विहीन हो गई है। इसलिए चहुंओर अराजकता का साम्राज्य है, जनता में असंतोष है। हम अनैतिक हो गये हैं। कारण हमने धर्म की व्याख्या ही त्रुटिपूर्ण की है। धर्म का अर्थ किसी विशेष पूजा पद्धति को मान लिया गया है। हम धर्मनिरपेक्ष नहीं धर्म विहीन हो गये हैं। पहले धर्म के मर्म को समझो।
धर्मनिरपेक्षता का मात्र इतना अर्थ है कि किसी विशेष पूजा पद्धतियों अनुयायियों से किसी के साथ वह व्यवहार कभी न किया जाये जो व्यवहार आपको अपने साथ पसंद नहीं। आज विपरीत हो रहा है। आज राजनीति तो धर्म शून्य हो गई है, किन्तु धर्म में राजनीति अवश्यक आ गई है।
याद रहे कि यदि राजनीति में धर्म होगा तो राजनीति स्वच्छ होगी, उच्च होगी, सेवा कारक होगी। राजनीतिज्ञों की भावनाएं पवित्र होगी, हृदयों में निर्मलता होगी, प्रजा के प्रति कर्तव्य भावना होगी, उनके दुख-दर्द और अभावों को दूर करने के उपाय होंगे, किन्तु धर्म में यदि राजनीति घुस जाये तो सर्वनाश हो जायेगा।