ईश्वर का स्वरूप है महानता। इस विशाल ब्रह्मांड को उसकी एक छवि के रूप में देखा जा सकता है और इस सुविस्तृत विस्तार के अन्तर्गत हो रही ज्ञात और अविज्ञात हलचलों को उस महासागर की तरंगे समझा जा सकता है।
उसे प्राप्त करने के लिए हमें अपनी संकीर्णता छोडऩी पडग़ी और उतनी महानता अपनानी पडग़ी, जिसके सहारे उस महान परमेश्वर का साक्षात्कार किया जा सके।
गडढे में बैठकर छोटी सी परिधि ही दिखाई देगी। कुए का मेंढक कुए की परिधि को ही ब्रह्मांड मान बैठता है। समतल भूमि पर बैठकर भी कुछ मीलों तक के दृश्य ही दृष्टिगोचर हो सकते हैं, किन्तु यदि विस्तृत अन्तरिक्ष के दिग्दर्शन करने हो तो अन्तरिक्षयान द्वारा अधिकाधिक ऊंचाई पर पहुंचने और वहां से दृष्टि पसारने के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से अपने अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति हो ही नहीं सकती। महानता से ही महानता को प्राप्त किया जा सकता है।