उपनिषद में एक अलंकार कथा आती है कि पिता के कुछ वाक्यो से खिन्न होकर नचिकेता यमराज के द्वार जाता है। उनकी अनुपस्थिति में उनके द्वार पर भूखा-प्यासा नचिकेता उनकी प्रतीक्षा करता रहा।
तीन दिन बाद यमराज आते हैं और कहते हैं- हे बेटा, लोग तो मुझसे भयभीत रहते हैं, मेरे पास कोई नहीं आना चाहता, पर तुमने मेरे पास आकर तीन दिन भूखे-प्यासे मेरी प्रतीक्षा की। मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। तुम मुझसे तीन वर मांगो, जो मांगोगे दूंगा।
तीसरे वर में नचिकेता ने आत्मा का ज्ञान मांगा, तब यमराज कहते हैं ‘नचिकेता तुम पुत्र मांगो, पत्नी मांगो, संसार की सम्पदाएं मांग लो, जो कुछ भी मांगोगे मैं दूंगा, परन्तु आत्मा के ज्ञान की चर्चा मत करो, इसके अतिरिक्त कुछ भी मांग लो।
सब प्रकार की सम्पदा जिसमें राज सिंहासन तक समाहित है नचिकेता को मिल रहे थे, परन्तु उसने उन्हें ठुकरा दिया। वह यमराज से कहता है कि जो भी ये भौतिक पदार्थ आप मुझे वैभव के रूप में, धन सम्पत्तियों के रूप में देंगे, सब तो यहीं छूट जायेंगे, ये नश्वर हैं। मुझे तो वह धन चाहिए, जो अविनाशी हो, साथ जाने वाला हो, जिसका किसी काल में नाश न हो, मुझे तो वह आत्म ज्ञान दीजिए, जिससे मेरा उद्धार हो। नचिकेता के हठ को देखकर यमराज प्रसन्न होकर उसे आत्मज्ञान प्रदान करते हैं।
मानव को यह श्रेष्ठ योनि आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही तो प्राप्त हुई है।