धर्म जीवन का व्यवहार है। उसका पालन करने से मनुष्य में अच्छे संस्कार बनते हैं।
एक प्रसिद्ध हकीम लुकमान हुए हैं, जिन्हें हर जड़ी-बूटी का ज्ञान था। मुस्लिम तो पुनर्जन्म को नहीं मानते, हिन्दू मानते हैं कि स्वभाव बनने में कई जन्मों का समय लगता है। पिछले जन्म के बहुत सारे संस्कार होते हैं, जो हमारे स्वभाव को बनाते हैं। इसी कारण कुछ व्यक्ति जीवन के प्रारम्भ से ही बहुत ही शान्त, शालीन, विनम्र और धैर्यशाली होते हैं। लुकमान भी स्वभाव से शांत और शालीन थे। उनके साथ एक घटना घटी।
जब वे बच्चे थे तो उन्हें बेच दिया गया, पर जिसने उन्हें खरीदा वह भगवान का भक्त था। एक दिन स्वामी ने ककड़ी खाई, कड़वी थी सो लुकमान को दे दी। स्वामी ने सोचा था थोड़ी खाकर यह भी फेंक देगा, पर लुकमान ने तो पूरी चट कर दी। स्वामी ने आश्चर्य से पूछा- कैसे खा ली? लुकमान कहते हैं, बहुत ही स्वादिष्ट थी, प्रभु का प्रसाद है। प्रभु की रचना में कोई दोष होता ही नहीं। स्वामी धार्मिक थे, अभिभूत हो गये। बोले- “तुम्हारे में संस्कार इस जन्म के तो नहीं है, अवश्य ही पिछले जन्मों में तुम परमात्मा के प्रति आस्थावान रहे होंगे। ऐसे संस्कार तो कई जन्मों के अभ्यास से बनते हैं।”
यदि व्यक्ति सुसंस्कारित है, प्रभु में आस्थावान है तो उसे पूरा संसार प्रभु का सुन्दर उपवन दिखाई देगा, किन्तु यदि मन में विकृत्ति है, उसे सब ओर झाड़-झंखाड ही दिखाई देंगे।