Tuesday, April 22, 2025

अनमोल वचन

मुनष्य के मन में दुर्बलताएं हैं, मनोविकार हैं, कमियां हैं, परन्तु सबसे प्रबल मनोविकार, सबसे बड़ी दुर्बलता क्रोध है। क्रोध हमारे द्वारा किये जाने वाले समस्त क्रियाकलापों को प्रभावित करता है। क्रोध आदमी को भाता क्यों है, उसका कारण क्या है? जब हमारी कामना पूर्ति में किसी प्रकार का व्यवधान पड़ता है तो ऐसे में क्रोध का जनम होता है।

 

 

 

जब कभी हमारी इच्छा के अनुसार कोई कार्य नहीं होता तो मन में तनाव, कुंठा, संघर्ष और असंतोषी स्थिति बनती है, तो ऐसे में क्रोध पैदा हो जाता है। यदि हम इस सच्चाई को स्वीकार कर ले कि हम ही सब कुछ नहीं हैं तो हम अपनी मर्यादा में ही रहेंगे। क्रोध के विकार से भी बच जायेंगे। क्रोध हमारा प्रबल शत्रु है, क्योंकि वह हम में पैशाचिक भावना भर देता है, जिस कारण हम अनर्थ कर बैठते हैं। क्रोध के कारण ही हिंसा, वैमनस्य, विरोध, कटुता, ईर्ष्या, आवेश, शत्रुता, प्रतिद्वंता जैसे अवगुण हमारे भीतर पैदा हो जाते हैं।

 

 

 

क्रोधी व्यक्ति का आवेश विरोधी का कुछ अहित करे न करें, परन्तु क्रोध करने वाले व्यक्ति को तो भीतर से जला ही देता है। क्रोध तो अग्रि है और अग्रि का गुण यह है कि दूसरे को ताप दे न दे, परन्तु जहां जलती है उस स्थान को तो जला ही देती है। इसलिए क्रोध से स्वयं को बचायें। जैसे हम शत्रु को अपने ऊपर हावी होने देना नहीं चाहते, इसी प्रकार अपने प्रबल शत्रु क्रोध को अपने ऊपर हावी न होने दें।

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