Sunday, March 2, 2025

अनमोल वचन

प्रभु में आस्था है, श्रद्धा है तो उसके बनाये सभी प्राणियों से प्रेम करो। जब हम सभी में प्रेम भाव रखेंगे तो यह अभिव्यक्ति प्रभु के लिए ही होगी। यदि हम एक-दूसरे से प्रेम नहीं करते तो समझो कि हमें परमात्मा भी प्रिय नहीं। यदि हम अपने पडौसी से अपने भाई से प्रेम के स्थान पर घृणा करते हैं तो परमात्मा के प्रति हमारा प्यार केवल दिखावा है, ढोंगी है। सच्चे प्रभु की पहचान तब होती है, जब वह द्वेष करने वाले शत्रु को जीत लें, उन्हें अपना मित्र बना ले। ऐसा प्रेम आत्मा की ज्योति है। प्रेम भक्ति है, जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम है उसके हृदय में ईश्वरीय आनन्द का स्रोत बहता है। जब आदमी सारी दुनिया को अपना मान लेता है, तब किसी में एक दूसरे प्रति द्वेष भाव रहेगा ही नहीं। जब सारी सृष्टि में प्रभु विद्यमान है तो द्वेष घृणा को स्थान कहां। जहां अनन्य प्रेम है, वहीं शान्ति है। प्रेम सहनशील होता है, प्रेम दयावान होता है। जहां प्रेम होता है, वहां ईश्वर और अभिमान का स्थान नहीं होता। प्रेम करना सरल नहीं। इसकी डगर बडी कठिन है। यदि ऐसा हो जाता तो संसार में कोई समस्या ही नहीं होती, हमारा जीवन सुन्दर, सरल और आनन्द से परिपूर्ण होता।

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