गुणों का संचय तभी लाभकारी हो पायेगा, जब हम अपनी दुर्बलताओं का त्याग करते जाये। गुणों का संचय और दोषों का त्याग ही व्यक्ति को महान बनाता है। आलस्य का परित्याग कर दें, लापरवाही छोड दे। आज का कार्य आज ही करे कल पर न छोडे। समस्याओं से भागे नहीं, उनका समाधान ढूढें। नशे आदि व्यसनों के त्याग का संकल्प करें। संकल्पों के मध्य कोई विकल्प न खोजा जाये। नशा करना ही है तो ईश भक्ति का नशा करें। जीवन सार्थक हो जायेगा। यदि भगवान के नाम की खुमारी अपने भीतर चढा ली जाये तो वह कभी उतरेगी नहीं। ऐसी चढेगी कि व्यक्ति के जीवन मं मस्ती ला देगी। धन भी उसके पास होगा तो धन का आनन्द भी उसे मिलेगा, कीर्ति भी मिलेगी, प्रभु की कृपा भी प्राप्त करेगा। इसलिए शुभ कर्म करो, पुण्य इकट्ठे करो, जो लोक के साथ-साथ परलोक में भी काम आयेंगे, किन्तु एक तथ्य यह भी…बादल कितना भी जल बरसाये परन्तु औंधे घड़ों में एक बूंद भी नहीं जायेगी, घड़ा खाली का खाली ही रहेगा। पात्र के आकार के अनुसार ही वस्तु उसमें समायेगी। देने वाला तैयार हो और लेने वाला संकोच करे तो बात कैसे बनेगी। जिसे प्यास नहीं उसे जल पीने को विवश नहीं किया जा सकता। प्यासे घोड़े को खींचकर जल के पास लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिसे ज्ञान की भूख है वही तो ज्ञानी के पास जायेगा, जिसे प्रभु प्राप्ति की लगन है वही तो भक्ति करेगा।