कोई न कोई लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति का होता है वह छोटा हो किंवा कोई बड़ा लक्ष्य हो। उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पुरूषार्थ किया जाता है। जो पुरूषार्थ करते हैं वे धीरे से करे अथवा शीघ्रता से करे लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं। लक्ष्य छोटा हो अथवा बड़ा हो पुरूषार्थ तो करना ही होगा। जो केवल सोचते ही रहते हैं अपने लक्ष्य प्राप्ति को यात्रा प्रारम्भ ही नहीं करते वे जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर ही नहीं पाते। लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा चाहे छोटे-छोटे कदमों से करें अथवा बड़े कदमों से आरम्भ किये बिना व्यक्ति न तो आगे बढ पायेगा और न ही लक्ष्य को प्राप्त कर पायेगा। भले ही छोटे-छोटे कदमों से ही सही अपने लक्ष्य की प्राप्ति की यात्रा आरम्भ अवश्य करें, पुरूषार्थ अवश्य करे, तभी आप आगे बढ़ पायेंगे, तभी लक्ष्य मिलेगा अन्यथा नहीं। अभिप्राय यही है कि बिना पुरूषार्थ किये जीवन में कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। निष्क्रिय व्यक्ति जीवन में कुछ भी नहीं कर पाते न ही समाज में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। समाज में सम्मान तो उन्हीं को मिल पाता है, आदर पाने की पात्रता तो उन्हें ही मिल पाती है, जो संघर्ष कर प्रगति के पथ के अनुगामी बनते हैं।