संसार में जो भी आस्तिक व्यक्ति हैं वे सभी संसार के पालनकर्ता परमात्मा से प्रार्थना कर उसका स्मरण करते है। अधिकांश व्यक्ति प्रार्थना करते समय प्रदर्शन तो प्रभु के पास बैठने का करते हैं, परन्तु वास्तव में प्रभु के समीप नहीं होते है, बल्कि अपने व्यापार में होते है, अपने विभागीय कार्यों के बारे में सोचते रहते है, अपने प्रतिष्ठान की प्रगति का मार्ग खोजते है। आज किससे क्या बात करनी है, किससे क्या व्यवहार करना है। यदि हम घंटो बैठने का प्रदर्शन न भी करें, तो कोई बात नहीं, कुछ पलों के लिए ही सही परन्तु प्रभु के साथ एक सच्ची प्रार्थना वह पल है, जिससे हम प्रभु के सामने अपना हृदय खोलते है। हम नम्रता से सारे संसार के सृजनहार के सामने बैठते है, विनती करते है और प्रतीक्षा भी करते है कि आपकी कृपा, उसका प्रेम हममे समा जाये, परन्तु हममें कितने है, जो अपने मन का द्वार खुला रखते है। यदि हम सचमुच प्रार्थना में खोय हो, तो हम देख नहीं पायेंगे कि हमारे चारों ओर क्या हो रहा है और न ही कोई विचार हमारा ध्यान भंग कर पायेगा। मन की चंचलता हमें प्रभु से मिलने से दूर रखती है। सबसे जरूरी है मन को रास्ते पर लाना उसे भक्ति भाव से ओतप्रोत करना।