‘यह समय भी गुजर जायेगा’ जिस किसी प्रबुद्ध व्यक्ति ने कहावत रची है उसने शत-प्रतिशत सही कहा है। सुख और दुख दोनों ही स्थितियों में यह पंक्ति कारगर सिद्ध होती है। सुख में यह कहावत सुखी मनुष्य की वर्तमान स्थिति के कारण उस पर अहंकार को हावी होने से बचाती है और दुख में दुखी मनुष्य को भविष्य की सम्भावनाओं के प्रति सम्बल देती हैं कि जैसा भी समय है गुजर ही जायेगा।
मनुष्य की प्रकृति भी अजीब किस्म की है। सुख के दिनों में वह अपनों को भूल जाता है और दुख के दिनों में उसके अपने उसे भूल जाते हैं। जब सुख साथ होता है तो वह अपने में ही आनन्दित रहकर स्वयं को अपने तक सीमित कर लेता है, जो उसके ‘अपने हैं उनके प्रति उपेक्षा का भाव आ जाता है।
इसके विपरीत दुख के समय में उसकी मदद करने वाले सीमित हो जाते हैं। अधिकांश उसकी ओर देखना, उससे सम्पर्क रखना छोड़ देते हैं। दुख से सुख और सुख से दुख की यह यात्रा जीवन भर अनवरत जारी रहती है। मनोनुकूल सफलता के बजाय यदि असफलता मिल जाये तो कहा जाता है कि समय ने साथ नहीं दिया।
तात्पर्य यही है कि स्थितियां विपरीत हैं। आत्म संतुष्टि के लिए कही जाने वाली यह बात मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में भी आशावान बनाये रखती है, जिससे वह समय परिवर्तन की आस लिए अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहता है।