एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है, जिसके अर्थ बहुत गहरे हैं ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। हम अपने जीवन में मन की इस चमत्कारिक शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
मन यदि हार मान लेता है, पराजय स्वीकार कर लेता है, तो तुच्छ सा कार्य भी हमारे लिए पर्वत लांघने जैसा दुर्गम और दुर्जेय बन जाता है। इसके विपरीत यदि हमारा मन यदि साहस और उत्साह से भरा होता है, तो कठिन से कठिनतम कार्य भी हमारे लिए सहज और सरल बन जाते हैं।
आज तक संसार में जितने भी श्रेष्ठ और महान कार्य हुए हैं, वे उन्हीं लोगों के द्वारा किये हुए हैं, जो मन के स्तर पर साहसी और उत्साही व्यक्ति थे, जिनके मन ने कभी पराजय स्वीकार नहीं की।
मन के बल के समक्ष देह बल अत्यन्त गौण है। मनोबल यदि सुदृढ है तो जर्जर देह वाला मनुष्य भी चमत्कारिक कार्य सम्पादित कर देता है।
गांधी जी कृश शरीर वाले व्यक्ति थे, परन्तु उन्होंने जो कार्य किये वे कार्य कोई भीमकाय व्यक्ति भी नहीं कर पाया। सशक्त तथा समर्थ मन वाले व्यक्ति के लिए जगत में कोई भी कार्य कठिन और दुर्गम नहीं। ऐसे मनोबल का विकास कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में कर सकता है।