जप और तप का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। जप-तप के बिना घर, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं व्यक्तिगत जीवन मुरझाया सा रहता है। इनका स्थान हमारे जीवन में है, तो जीवन में निखार आयेगा, घर-परिवार में सुख समृद्धि, शान्ति की अभिवृद्धि होगी। खुशहाली बढेगी।
जप शब्द का अर्थ है किसी मंत्र, ईश्वर के नाम आदि को धीरे स्वर में बार-बार दोहराना। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना करना, परमात्मा का चिंतन ध्यान करना। तप का अर्थ है लक्ष्य की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को सहते हुए अग्रसरित होना। द्वन्दों को सहन करने का नाम तप है। गर्मी, सर्दी, भूख-प्यास, लाभ हानि, मान-अपमान आदि द्वन्दों को सहन करना तप कहलाता है। तप से सहनशक्ति में वृद्धि होती है।
अपनी सामर्थ्य शक्ति के अनुसार यथा शक्ति ही तप करे, जिससे बाधा की अनुभूति न हो। मन प्रसन्न रहना चाहिए। जप में प्रभु के नाम अथवा मंत्र के भाव को उसकी महिमा को हृदय में रखकर उस पर केन्द्रित रहे। प्रभु का नाम केवल जिह्वा पर रहे और मन संसार में घूमता रहे तो ऐसे जाप का कोई लाभ नहीं, जाप का पूर्ण लाभ तभी मिलेगा, जब मंत्र के भाव के अनुसार ही हमारा आचरण भी हो। मंत्र वह रहा है कि प्रभो हमें दुर्गण दुर्व्यसनों से दूर करें और हम उन्हें दूर करने का तनिक भी प्रयास न करे तो सब क्रियाएं व्यर्थ हैं।