Thursday, November 21, 2024

पीएम गन्ना किसानों के हित के कर रहे है दावे, योगी सरकार दे रही है किसानों के खिलाफ शपथपत्र !

-सरदार वी.एम.सिंह
देश अपने 18वें लोक सभा के लिए अपने उम्मीदवार चुनने में लगा हुआ है,यह प्रक्रिया 7 चरण मे 19 अप्रैल से शुरू होकर 1 जून को समाप्त होगी और नतीजे 4 जून को घोषित होंगे। चुनाव के दौरान हर पार्टी मतदाता को नए नए वादे करके लुभाने में लगी है। कोई उसे डराने में लगा है कि दूसरी पार्टी आ गई तो 5 साल के लिए तुम्हारी बरबादी होगी।
कृषि प्रधान देश के बारे में कोई यह नहीं कहता कि अगले 5 सालों में देश के किसानों की किस्मत बदल देंगे, जिससे किसान आत्महत्या न करें। कुछ पार्टियों ने फसल की एमएसपी की बात कही है, पर फसल की लागत कैसे तय करेंगे इस पर कोई बात नहीं है। वहीं, देश में सरकारी आंकड़ों के तहत करीब 5 करोड़ गन्ना किसान परिवार हैं और एक परिवार में अगर औसतन 5 सदस्य होते हैं तो देश की आबादी का लगभग पांचवा हिस्सा गन्ना उगने से जुड़ा है और उसके बारे में चुनाव में किसी पार्टी द्वारा गन्ना किसानों की भलाई के लिए कुछ नहीं कहा।
वो अलग बात है कि उत्तर प्रदेश के पीलीभीत व खीरी की सभा में प्रधानमंत्री गन्ने की बात करते हैं और कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने गन्ना किसानों के लिए बहुत कुछ किया है जिससे किसानों का जीवन बहुत बेहतर हो गया। यहां प्रधानमंत्री के सलाहकार उनको बताने में दो गलतियां कर गए। पहली गलती कि गन्ना उत्तर प्रदेश में ही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक ,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडू, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार और मध्य प्रदेश आदि में भी होता है और दूसरी गलती कि  गन्ना किसानों का जो भी भला हुआ है वो उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के माध्यम से हुआ है, जहां उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के विरोध में और मिल मालिकों के साथ खड़ी दिखती है।
याद रहे उच्चतम न्यायालय के 5 जज के संविधान पीठ ने अपने प्रांत में गन्ने का रेट (एसएपी) निर्धारित कराने का अधिकार दिया, नहीं तो गन्ना किसानों को एक तरफ केंद्र द्वारा निर्धारित गन्ना मूल्य मिलता और दूसरी तरफ मिल के द्वारा 1996 से 2020 तक दिए गई पर्चियों के कारण किसानों को लगभग 4 से 5 लाख रुपये प्रति एकड़ मिलों को वापस करना पड़ता, क्योंकि हर पर्ची पर लिखा था कि लेनदेन सुप्रीम कोर्ट के अंतिम अदेश के आधार पर किया जाएगा। मिल मालिक राज्य सरकार और केन्द्र सरकार द्वारा घोषित गन्ना रेट का फर्क हर किसान से वसूल करते।
गन्ना रेट की लड़ाई उत्तर प्रदेश से गन्ना सत्र 1996/97 में शुरू हुई जब प्रदेश में भाजपा और बसपा की सरकार थी। देश में देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे और रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मिल मालिकों की रिट याचिका 36889 /1996 में 11.12.1996 को आदेश देकर राज्य सरकार को गन्ना का रेट तय करने से मना कर दिया था, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट का आदेश स्टे नहीं किया, देश के सभी गन्ना उत्पादक राज्यों ने अपने अपने हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के तहत राज्य सरकार के रेट घोषित कराने पर रोक लगा दी, जो संविधान पीठ के फैसले से राज्य सरकार को रेट तय करने का अधिकार मिला।
संविधान पीठ ने 5.5.2004 को इलाहाबाद हाई कोर्ट लखनऊ पीठ की रिट याचिका 2086 /1997 को बरकरार रखा, जिसमें किसानों को विलंब से गन्ना मूल्य मिलने पर ब्याज देने को कहा। सरकार ने ब्याज देने का ऑर्डर तो निकाला पर जब किसानों को ब्याज का पैसा नहीं मिला तो किसान मज़दूर संगठन द्वारा 2006 में रिट याचिका 7066 दाखिल की गई, जिसमें किसानों को 1996 से आज तक का ब्याज दिलवाने की गुजारिश की। वहीं 2004/05 एवं 2005/06 में किसानों को सुप्रीम कोर्ट की एक सोसायटी एक रेट और एक मिल एक रेट के तहत अंतर मूल्य देने के लिए रिट याचिका 684 और 7067 दाखिल की। आप को याद रहेगा एक सोसायटी एक रेट और एक मिल एक रेट के आधार पर पराई सत्र 2009/10 में राज्य सरकार द्वारा घोषित 165 रुपये प्रति क्विंटल के बजाय आखरी पर्ची पर 260/ रुपये मिला। गन्ना सत्र 2011/12 के गन्ना मूल्य एवं विलंब पर बयाज देने के लिए रिट याचिका 6429/2012 दाखिल हुई थी।
जब राजनीतिक पार्टियां इलेक्शन में गन्ना किसानों से सच झूठ बोलकर वोट मांग रहे, उसी समय 1.05.2024 को यह चारों याचिका हाईकोर्ट में लगी थीं। सरकार ने अपने लिखित जवाब में ब्याज एवं अंतर मूल्य देने से इंकार कर दिया। मिल मालिकों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा अगर किसान को 1996 से  ब्याज दिया जाएगा तो मिले बंद हो जाएंगी।
हाईकोर्ट ने सरकार से 1996/97 से आजतक का गन्ना भुगतान जिसमें विलंब होने पर ब्याज़ का पूरा ब्यौरा मांगा है। अगली सुनवाई इसी 27 मई को होगी। देखना है कि कोर्ट में जो सरकार व पार्टियां मिल मालिकों का साथ देती हैं वो इलेक्शन में और कितना गुमराह करेंगी। यह भी अजीब विडंबना है कि सरकार गन्ना किसानों की वोट से बनती है और उनके खिलाफ मिल मालिकों के साथ कोर्ट में खड़े नजर आती है।
आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जब उत्तर प्रदेश की 78 निजी मिल मालिकों ने गन्ना सत्र 2013/14 में मिल बंद करने का नोटिस दिया था उस समय भी इलाहबाद हाईकोर्ट ने 3 दिन में मिलों को चालू कराने के आदेश दिए थे। 9.01.2014 को जब हाईकोर्ट ने भुगतान के विलंब पर ब्याज़ देने का आदेश दिया, जिसके विपरीत मिल मालिकों की अर्जी पर तत्कालीन सरकार ने मंत्रीमंडल का फ़ैसला कर 2012/13, 2013/14 एवं 2014/15 का ब्याज़ माफ कर दिया। इस लगभग 2000 करोड़ रुपये के ब्याज़ की माफी को उच्च न्यायालय ने 9.03.2017 को खारिज कर दिया और भाजपा सरकार के गन्ना आयुक्त से इस ब्याज़ माफी को किसानों की  दलील कि अगर किसान गन्ना लगाने के लिए ऋण पर ब्याज देता हैं तो उसे भी ब्याज़ मिलना चाहिए, को ध्यान में रखते हुए 4 महीने में फैसला करें।
जब गन्ना आयुक्त ने एक साल तक फैसला नहीं लिया तो उच्च न्यायालय ने अवमानना याचिका में गन्ना आयुक्त को तलब किया, जिसके बाद तत्काल ही 2019 में आयुक्त ने फैसला दिया की घाटे में चल रही मिल 7% और बाकी मिले 12% ब्याज़ देंगी। आज तक यह पैसा नहीं मिला, पहले तो कोर्ट में आज कल करते रहे और जब दिसंबर 2022 में हाईकोर्ट ने कड़ा रुख लिया तो राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रुकवा दिया। यह अर्जी भी सरकार ने उस याचिका में लगाई जिसमें सरकार द्वारा गन्ना भुगतान के विलंब पर ब्याज़ माफ करने के अधिकार को चनौती दी गई थी।
मुझे तो कोई भी सरकार ईमानदारी से किसानों के साथ खड़ी नहीं दिखी।सरकार अगर किसानों की हमदर्द दिख कर वोट लेना चाहती है तो किसानों के साथ बेशक न खड़ी हो पर मिल मालिकों को संरक्षण न दे और जो आदेश किसानों के हक में हो उसे ईमानदारी से सरकारी मिलों पर लागू कर दे।
पढ़े लिखे लोग और खास करके युवा पीढ़ी समझ गई है कि राजनीतिक पार्टियों झूठे वादों के सहारे किसानों से वोट लेती हैं, युवा जुमलों से दुखी होकर, निराश होकर, खेती छोड़ रहा है, ऐसा नहीं है कि युवकों को नौकरी मिल गई, वह खेती छोड़ रहा है क्योंकि खेती घाटे का सौदा है। ऐसा चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब किसान अपना और अगली पीढ़ी का हक लेने के लिए अपनी पार्टी बनाएगा और अपनी सरकार बनाकर कृषि प्रधान देश को फिर सोने की चिड़िया बनाएगा।
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