Sunday, November 10, 2024

अनमोल वचन

एक अलंकारिक कथा के अनुसार धरती से पूछा गया कि वह किसके भार से पीडि़त है तो धरती उत्तर देती है? ”सुनो मैं उन पर्वतों के भार से पीडि़त नहीं हूं जिनमें से कई तो इतने ऊंचे हैं कि लगता है आकाश को छू लेंगे। मैं अपनी गोद में बिखरी वनस्पति अर्थात वृक्षों, पौधों, बागों, वनों और चलते-फिरते जीव-जन्तुओं के भार से भी पीडि़त नहीं हूं, मैं नदियों, नालों और अथाह जलराशि को अपने में समेटे समुद्रों के भार से भी पीडि़त नहीं हूं, परन्तु मेरे ऊपर बोझ है तो केवल उन लोगों का है, जो कृत्घ्न हैं, छल करते हैं, उपकार का बदला प्रत्युपकार से न देकर अपकार से देते हैं, विश्वासघाती हैं, अपनों को धोखा देते हैं, जो राष्ट्रद्रोही हैं, जिस राष्ट्र की फिजाओं में सांस लेते हैं, जिसके अन्न-जल से उनका पोषण होता है और जिसकी मिट्टी में ही उन्हें विलीन होना है, उसी से द्रोह करते हैं। जिन मां-बाप ने पेट पट्टी बांधकर औलाद की परवरिश की कि शायद बुढ़ापे में उनका सहारा बने उन्हें ही बेसहारा छोड़ देते हैं। अनाथ आश्रमों में आश्रय लेने को मजबूर कर देते हैं। मुझसे उनका भार सहन नहीं होता। दुख इस बात का है कि धरती जिनके भार से पीडि़त होती है, उनकी संख्या दिनों दिन बढ़ रही है, भगवान का शुक्र है कि धरती इनके बोझ से फट नहीं रही, क्योंकि अच्छे इंसानों ने संतुलन बनाया हुआ है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय