त्याग मार्गी कहते हैं कि घर गृहस्थी का जंजाल प्रभु भक्ति और प्रभु प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी रूकावट है। इसलिए वे गृहस्थ को त्याग कर त्यागी, वैरागी अथवा सन्यासी बन जाते हैं। दूसरी विचारधारा के संतों ने भक्ति मार्ग या प्रेम मार्ग को प्रभु प्राप्ति का सच्चा साधन माना है। वास्तव में त्याग का सम्बन्ध मन आत्मा से है शरीर से नहीं। संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं जहां आदमी रोटी, कपड़े और मकान की जरूरतों से मुक्त हो सकता है। हम घर गृहस्थी का त्याग करके जहां मर्जी चले जाये ये तीनों जरूरतें हमारे साथ रहती हैं। यदि हम त्यागी बनकर जंगलों, पहाड़ों अथवा धार्मिक आश्रमों में चले जाते हैं, तो अपने परिश्रम की कमाई की जगह भूख मिटाने के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं। गृहस्थी वाले वस्त्र त्याग देते हैं, परन्तु तन ढकने के लिए किसी न किसी प्रकार के कपड़ों की आवश्यकता फिर भी पड़ती है। हम घर की छत की नीचे नहीं रहते, परन्तु सिर छिपाने के लिए छत की आवश्यकता फिर भी पड़ती है। यही नहीं हम जहां भी जायेंगे, हमारा मन और उसमें भरी इच्छाएं, कामनाएं, तृष्णायें हमारे साथ जायेंगी। जो व्यक्ति परिवारों में रहते हुए मोह, माया, आशा, मनसा में लिप्त नहीं वह घर में रहता हुआ भी सच्चा त्यागी और सन्यासी है।