नई दिल्ली। ‘एक देश-एक चुनाव’ की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए इस प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी दे दी है। गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में इस विधेयक को स्वीकृति दी गई। सरकार इसे जल्द ही संसद के पटल पर पेश करने की योजना बना रही है।
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‘एक देश-एक चुनाव’ का उद्देश्य देशभर में लोकसभा, विधानसभा, शहरी निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराना है। इससे न केवल चुनावी खर्चे में कमी आएगी बल्कि विकास कार्यों में आ रही रुकावटों को भी दूर किया जा सकेगा।
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भारतीय जनता पार्टी की सांसद और मशहूर एक्ट्रेस कंगना रनौत ने ‘एक देश-एक चुनाव’ का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे समय की आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि “चुनावों के कारण देश का बहुत पैसा खर्च होता है और सरकारी कामों में बाधा आती है। महीनों तक सभी कर्मचारी चुनावी कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जिससे विकास प्रभावित होता है। ‘एक देश-एक चुनाव’ से न केवल खर्चे कम होंगे बल्कि देशवासियों को बार-बार मतदान के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। यह कदम पहले उठाया जाना चाहिए था, लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में संभव हो रहा है।”
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कंगना ने विश्वास जताया कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों इस पहल का समर्थन करेंगे, क्योंकि यह देश के हित में है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय हित में है। उन्होंने कहा कि”बार-बार चुनाव देश के विकास में बाधा डालते हैं। एक साथ चुनाव कराने से विकास कार्यों को बढ़ावा मिलेगा। हमारी पार्टी लंबे समय से इस पहल के पक्ष में रही है।”
सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया। यह समिति ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए आवश्यक कानूनी और संवैधानिक बदलावों पर सुझाव देने के लिए गठित की गई थी।
फिलहाल देश में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे न केवल आर्थिक संसाधनों का अधिक उपयोग होता है, बल्कि प्रशासनिक कामों में भी देरी होती है। ‘एक देश-एक चुनाव’ के जरिए सरकार का उद्देश्य विकास कार्यों में गति लाना और चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाना है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इस विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद इसे संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस पहल से न केवल देश को आर्थिक लाभ होगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी अधिक सुचारू और व्यवस्थित होगी।