यदि दैव रक्षक हैं तो अरक्षित भी रक्षित रहता है। दैव के मारने पर सुरक्षित भी नष्ट हो जाता है। जिसे ईश्वर बचाता है वह वन में छोड़ा हुआ भी जीता जागता रहता है। यदि ईश्वर बचाने वाला नहीं है तो लाख यत्न करने पर भी घर के भीतर स्वयं को सुरक्षित मानता भी जीवन से हाथ धो बैठता है।
भूखे लोग थोड़ी सी भी लक्ष्मी पाकर आनन्द मग्न हो जाते हैं और थोड़ी सी ही विपत्ति में ही निराशा और दुखी हो जाते हैं, परन्तु विवेकी पुरूष के लिए विपत्ति और हर्ष समान होते हैं। विवेकी को यह ज्ञान है कि सुख के अनन्तर दुख और दुख के अनन्तर सुख उसी प्रकार आया करता है, जिस प्रकार दिन के पश्चात रात्रि और रात्रि के पश्चात दिन।
दुखों से घबराओ मत, सुखों में ईश्वर को भूलों मत, सदैव राग द्वेष, भय, क्रोध से रहित बनो। स्थितप्रज्ञ के यही लक्षण है। सुख-दुख, हानि-लाभ, जय पराजय को जो एक समान समझकर जीवन संग्राम में उतरता है, वही सफल इंसान है।