आहार और स्वास्थ्य का चोली दामन का साथ है इसलिए स्वस्थ रहने के लिए उचित आहार का लेना अनिवार्य होता है। भारत में अनेक ऋतुओं के होने से हमें अपने आहार का भी ऋतु अनुसार ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि आहार के साथ-साथ ऋतुएं भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। किस ऋतु में किस दोष का अधिक प्रकोप रहता है, उसे ध्यान में रखकर ही आहार लेना चाहिए।
बसंत ऋतु:- बसंत ऋतु में कफ का प्रकोप अधिक होता है और जठराग्नि कमज़ोर हो जाती है, अत: इस मौसम में भारी, मधुर-अम्ल, लवण रस स्निग्ध कफ-प्रकोप वाला आहार नहीं लेना चाहिए। सुपाच्य और हल्का भोजन ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
ग्रीष्म ऋतु:- इस मौसम में सूर्य देवता पूरे ज़ोर पर होते हैं। गर्मी अधिक होने के कारण शरीर का तरल अंश खिंचने लगता है, इसलिए इन दिनों शीतल पेयों का सेवन खूब करना चाहिए। इस मौसम में शीतल, हल्का और कम तेल वाला भोजन लेना चाहिए। इन दिनों जठराग्नि मंद हो जाती है इसलिए गरिष्ठ और अधिक मसालेदार भोजन का सेवन न करें।
वर्षा ऋतु:- वर्षा ऋतु में चिपचिपापन, रूखापन, पसीना, धूप व गर्मी से शरीर में व्याकुलता बढ़ जाती है। पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है। शरीर थका-थका और कमज़ोर सा रहता है। वर्षा ऋतु में रोगों के आक्रमण का भय अधिक होता है इसलिए इन दिनों सावधानीपूर्वक भोजन लें जो शीघ्र पच जाए। दाल और मौसमी सब्जियों का सेवन करें। दही, दूध का सेवन भी कम करें व हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कच्चा न करें। अच्छी तरह धो-पोंछ कर व पका कर करें।
शरद् ऋतु:- इस मौसम में पित्त का प्रकोप होता है। इस मौसम में मधुर रस युक्त आहार व दही का सेवन करना चाहिए।
हेमन्त ऋतु:- इस काल में हवा में ठंडक बढऩी शुरू हो जाती है और पाचन शक्ति तीव्र हो जाती है। इन दिनों में गरिष्ठ, पौष्टिक आहार आसानी से पच जाता है। स्वस्थ रहने हेतु गोंद, मेथी, घी दूध आदि का सेवन करना चाहिए। शीत वायु होने से त्वचा का विशेष ध्यान रखें। ठंडे पेयों का सेवन न करें।
शिशिर ऋतु:- इस ऋतु में ठंड का प्रकोप कम होने लगता है। थोड़ी सी असावधानी से सेहत खऱाब हो सकती है। बीच-बीच में वर्षा, कोहरा, बादल रहता है। इस मौसम में रूखापन पैदा करने वाला भोजन नहीं करना चाहिए। तेज़ हवाएं शरीर में रूखापन बढ़ाती हैं। ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
– नीतू गुप्ता