जो नम्र है उसे न किसी का भय होता है न पतन की चिंता। जो नम्र है उसका सर्वत्र आदर होता है। जो अभिमानी होता है, उसका सर्वत्र तिरस्कार होता है।
किसी ने फुटबॉल से पूछा, “क्या कारण है तुम जिसके चरणों में जाती हो, वही तुम्हें ठोकर लगाता है?” फुटबाल ने कहा, “मेरे पेट में अभिमान की हवा भरी हुई है, इसीलिए लोग मुझे ठोकर लगाते हैं।”
यदि आप चाहते हैं कि लोग आपका आदर सत्कार करें, तो विनम्र बनो। नम्रता मानव जीवन का आभूषण है। नम्रता से मनुष्य के गुण सुवास्ति और सुशोभित हो उठते हैं। नम्रता विद्वान की विद्वता को, धनवान के धन को, बलवान के बल को और रूपवान के रूप को चार चांद लगा देती है। सच्चा बड़प्पन और सभ्यता भी नम्रता में ही है, किन्तु मनुष्य की दुर्बलता यह है कि संसार के पदार्थ प्राप्त करके वह अकड़कर चलने लगता है। उसके शरीर रूपी गुब्बारे में अहंकार की हवा भर जाती है। परन्तु जैसे ही दुख की सुई उसमें चुभती है, हवा निकलकर हवा में मिल जाती है और गुब्बारा जमीन पर गिर जाता है।
यदि वह हर परिस्थिति में नम्र बना रहे तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसका धैर्य बना रहेगा, हर परिस्थिति में सुख और सुख का ही अनुभव करेगा। दुख की छाया कभी उस पर आयेगी ही नहीं।