मनुष्य के जीवन का पल-पल एक उज्जवल भविष्य की सम्भावना को अपने साथ लेकर इस धरती पर आता है। जीवन का हर पल मनुष्य के उत्थान के लिए महान मोड़ सिद्ध हो सकता है। व्यक्ति जब समय को व्यर्थ गंवाता है तो उसे किसी क्षण पश्चाताप की अग्रि में जलना पड़ता है।
जो जीवन में कुछ करने की तमन्ना, सपना मन में संयोए है, उन्हें चाहिए कि वे कभी भी अपने कर्म कर्तव्य को भूलकर भी कल पर न छोड़े। जो काम आज करना है, बस उसे आज ही करना है। कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित करे न कि कल का दिन आज के काम के लिए। आज के काम को आज ही करना है। इन सिद्धांत को नजर-अंदाज करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है।
यह अपने भविष्य को पतन के गर्त में गिराने जैसा है। प्रभु ने जीवन का यह अमूल्य समय मनुष्य को महानता का इतिहास रचने के लिए प्रदान किया है, पर वह समय की पहचान नहीं करने के कारण दर-दर ठोकर खाते नारकीय जीवन जीता है।
विवेकानन्द 32 वर्ष की आयु में ‘देव संस्कृति के पुरोधा बने। यह केवल समय के सदुपयोग का परिणाम है। समय गतिमान है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। कुछ बनने के लिए समय की प्रतीक्षा तो मनुष्य को करनी पड़ती है।