नोएडा। 15 हजार करोड़ रुपये के जीएसटी फर्जीवाड़े में शामिल नौ आरोपियों पर नोएडा पुलिस ने 25-25 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया। बीते दो माह से नोएडा पुलिस की चार टीमें फरार नौ आरोपियों की तलाश में तीन राज्यों में दबिश दे रही थीं। लंबे समय तक जब आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो इनपर इनाम घोषित किया गया।
जिन पर इनाम घोषित हुआ है उसमें दिल्ली निवासी अंचित गोयल, प्रदीप गोयल, अर्जित गोयल और रोहित नागपाल, हरियाणा निवासी कुनाल मेहता, आशीष अलावादी, बलदेव उर्फ बल्ली और मध्यप्रदेश निवासी प्रवीण शामिल हैं। एसीपी रजनीश वर्मा ने बताया फरार आरोपियों की चल और अचल संपत्ति की भी पहचान की जा रही है। जल्द ही आरोपियों की संपत्ति की पहचान कर कुर्की की प्रक्रिया भी शुरू होगी। गिरोह के जो शातिर पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं,उन पर गैंगस्टर एक्ट के तहत भी कार्रवाई की गई है। कई आरोपियों के फ्लैट सहित अन्य संपत्ति को कुर्क किया गया है। इस मामले में अबतक सरगना समेत 22 आरोपियों को नोएडा पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है।
अधिकारियों ने बताया कि बीते एक जून को पुलिस ने गिरोह के आठ आरोपियों को दबोचकर गिरोह का पर्दाफाश किया था। आरोपी फर्म का फर्जी बिल बनाते थे और जीएसटी रिफंड यानि इनपुट टैक्ट क्रेडिट प्राप्त कर सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाते थे। सभी आरोपी सीए हैं। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पता चला कि गिरोह के सदस्यों ने देश के अलग-अलग हिस्से में 2660 फर्जी कंपनी बनाई,जिसका जमीन पर कोई अस्तित्व ही नहीं था। सभी कंपनियां कागजों में संचालित थी और इसी पर आरोपी इनपुट टैक्ट क्रेडिट प्राप्त कर रहे थे। यूपी और नोएडा के पते पर बनी कंपनियों की जानकारी भी पुलिस को मिली थी।
मामले की जांच कर रही पुलिस का कहना है कि गिरोह के सदस्यों ने फर्जीवाड़े के लिए कई टीम बनाई हुई थी। पहली टीम फर्जी फर्म तैयार करने के लिए सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से अवैध रूप से पैन नंबर खरीदती थी। इसके बाद मजदूरों और अशिक्षित लोगों को एक हजार रुपये का लालच देकर उनके आधार कार्ड में फर्जी मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड करा लेते थे। इसके बाद डेटा से ऑनलाइन रेंट एग्रीमेंट और बिजली बिल को डाउनलोड करते थे।
डाउनलोड किए गए रेंट एग्रीमेंट और बिजली बिल को एडिट कर फर्म का पता तैयार किया जाता था। कामगारों के आधारकार्ड के नाम को खरीदे गए पैन कार्ड डेटा में सर्च किया जाता था। कुछ नाम कॉमन आने पर उनके नाम के आधार कार्ड और अन्य फर्जी दस्तावेजों को फर्जी फर्म और उसका जीएसटी नंबर रजिस्टर कराने के लिए जीएसटी की वेबसाइट पर लाग इन करते थे। विभाग से एक वेरिफिकेशन कोड आधार कार्ड में दर्ज मोबाइल नंबर पर पहुंचता था। ओटीपी को पोर्टल में दर्ज कर फर्म तैयार हो जाती थी।