संसार की मिथ्या वासनाएं बिना निरन्तर अभ्यास के क्षीण नहीं हो सकती। सुकरात में शारीरिक सौंदर्य का अभाव था, लेकिन वे भगवान से प्रार्थना करते थे कि ‘हे भगवान मेरी प्रार्थना स्वीकार करे कि मैं भीतर से खूबसूरत बनूं।’
भीतर से खूबसूरत होने का तात्पर्य है मन का निर्विषयी होना। हम संसार में तो रहे, परन्तु संसार हमारे मन में न रहे प्रयास यही होना चाहिए। जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया। मन की शक्ति अभ्यास से है विश्राम से नहीं।
जैसे प्रात: काल सूर्य उदय होते ही अंधकार दूर भाग जाता है, वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएं शांत हो जाती है, परन्तु मन प्रसन्न तभी होता है, जब उसके दोष दूर हो जाते हैं। शान्ति की आशा तभी की जा सकती है, जब मन स्वच्छ हो, निर्मल हो एवं निष्काम हो। मन यदि मैला होगा तो मनुष्य को व्यग्र बनाये रखता है।
कुछ न कुछ इच्छा प्रकट करता रहता है। मन की इच्छा को दबाना कठिन हो जाता है। ऐसा कलुषित मन आदमी से न जाने क्या-क्या पाप कराता रहता है। इसलिए मन को नियंत्रण में रखने का प्रयास निरन्तर करते रहना चाहिए।