नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने के बाद भारी मात्रा में नकदी मिलने से हड़कंप मच गया है। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने गुरुवार रात एक आपात बैठक बुलाई और जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से वापस उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला लिया।
सूत्रों के मुताबिक, कॉलेजियम ने इस मामले में जज के खिलाफ एक आंतरिक जांच शुरू कर दी है और दिल्ली हाईकोर्ट से भी इस बारे में रिपोर्ट मांगी गई है। इसी बीच हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने दिल्ली जज के बंगले में 15 करोड़ रुपये पाए जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
दिलचस्प बात यह है कि नकदी की बरामदगी न तो सीबीआई, न प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और न ही पुलिस ने की, बल्कि इसे दिल्ली के फायर ब्रिगेड डिपार्टमेंट ने खोजा।
क्या है पूरा मामला?
14 मार्च की रात करीब 11:30 बजे दिल्ली के तुगलक रोड स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की सूचना मिली। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली में मौजूद नहीं थे, वे होली मनाने के लिए शहर से बाहर गए हुए थे। आग लगने की सूचना मिलते ही उनके परिवारवालों ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को बुलाया।
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आग बुझाने के दौरान जब फायर ब्रिगेड के कर्मचारी घर के एक कमरे में पहुंचे, तो वहां भारी मात्रा में नकदी देख सब हैरान रह गए। इसके बाद फायर ब्रिगेड ने इसकी सूचना तुरंत दिल्ली पुलिस को दी। पुलिस ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी, जिसने यह जानकारी भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को दी।
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इस गंभीर मामले को देखते हुए सीजेआई संजीव खन्ना ने 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की आपात बैठक बुलाई। बैठक में जस्टिस संजीव खन्ना के साथ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हुए। कॉलेजियम ने इस मामले को न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता से जुड़ा मानते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा को तत्काल प्रभाव से इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेजने का निर्णय लिया।
सूत्रों ने बताया कि इस दिशा में एक कदम उठाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय से घटना के संबंध में रिपोर्ट मांगी गई है। सूत्रों के अनुसार, इससे पहले इस घटनाक्रम के बाद शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने गुरुवार को सर्वसम्मति से न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित की सिफारिश की थी।
आधिकारिक सूत्रों ने हालांकि एक लिखित बयान में कहा, “न्यायमूर्ति वर्मा के घर पर हुई घटना के संबंध में गलत सूचना और अफवाहें फैलाई जा रही हैं।” उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने साक्ष्य और सूचना एकत्रित करने के लिए आंतरिक जांच प्रक्रिया शुरू की है। उनसे शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट देने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, “रिपोर्ट की जांच की जाएगी और आगे की और आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रक्रिया अपनाई जाएगी।”
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इसी बीच हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने दिल्ली जज के बंगले में 15 करोड़ रुपये पाए जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ‘‘इलाहाबाद हाईकोर्ट कोई कूड़ादान नहीं’’ है कि यहां कुछ भी फेंक दिया जाए।
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उन्होंने इस कार्रवाई पर सख्त ऐतराज जताते हुए सोमवार को आमसभा की बैठक आहूत की है। यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसी स्थिति में हम उन्हें यहां बैठने नहीं देंगे। जरूरत पड़ी तो हम काम भी ठप कर देंगे। अनिल तिवारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के इस फैसले से गंभीर सवाल यह उठता है कि क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय कूड़ादान है ? यह मामला तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम वर्तमान स्थिति की जांच करते हैं जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की कमी है और लगातार समस्याओं के बावजूद पिछले कई वर्षों से नए न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि यह भी गंभीर चिंता का विषय है कि बार के सदस्यों को न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय कभी भी बार से परामर्श नहीं किया गया। पात्रता पर विचार करना मानक के अनुरूप नहीं प्रतीत होता है। कुछ कमी है जिसके कारण भ्रष्टाचार हुआ है और परिणामस्वरूप न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बहुत नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कह सकते कि यह स्थिति सर्वोच्च न्यायालय की जानकारी में नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार “इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुछ गड़बड़ है“ जैसी टिप्पणी की है।
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अनिल तिवारी ने कहा कि वर्तमान में हम कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। विशेष रूप से न्यायाधीशों की कमी के कारण महीनों तक नए मामलों की सुनवाई नहीं हो पाती है। जिससे कानून के शासन में जनता का विश्वास कम होता जा रहा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कूड़ेदान में हैं। उन्होंने कहा कि बार एसोसिएशन की चिंता केवल न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बनाए रखना है।
इस स्थिति में हम आकस्मिक आम सभा बुलाने के लिए बाध्य हैं ताकि बार के सदस्य उचित निर्णय ले सकें। उन्होंने यह भी कहा कि बार एसोसिएशन को लगता है कि इन सभी कारकों के पीछे इलाहाबाद हाईकोर्ट को विभाजित करने की साजिश है, जिसके लिए हम अंतिम दम तक लड़ाई का संकल्प लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में रिक्तियां भरने के लिए अपेक्षा की है
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अनिल तिवारी ने कहा कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर महादेवन की खंडपीठ ने कमलाबाई के मामले में पारित आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिक्तियों के कारण मुकदमों के बोझ और तीन दशक से मामले लंबित होने का जिक्र किया है। खंडपीठ ने लिखा कि एक न्यायाधीश के पास लगभग 15000 से 20000 मामले हैं। वादकारी अपने मामलों की सुनवाई और निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इसका एकमात्र उपाय यह है कि रिक्तियों को भरने के लिए यथाशीघ्र आवश्यक कदम उठाए जाएं और शुद्ध योग्यता और क्षमता के आधार पर उपयुक्त व्यक्तियों की सिफारिश की जाए।
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खंडपीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले पर गौर करने और अपने प्रशासनिक पक्ष पर इस सम्बंध में उचित आदेश करने की अपेक्षा की है। अनिल तिवारी ने कहा कि इस आदेश का आशय यह नहीं है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को कूड़ादान समझकर कुछ भी डाल दिया जाए।
गौरतलब है कि, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही बतौर जज नियुक्त हुए थे। जिन्हें अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया था। जज बनने से पहले वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्य सरकार के चीफ स्टैंडिंग काउंसिल भी रहे।