लहसुन की उन्नत किस्म से पाएं मोटी कलियां, लंबे समय तक स्टोर करने की क्षमता और लाखों का मुनाफा

अगर आप भी लहसुन की खेती करने की सोच रहे हैं तो आज हम आपको एक ऐसी किस्म के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी मांग बाजार में सबसे ज्यादा है। यह किस्म मोटी और चमकदार कलियों के लिए जानी जाती है और खास बात यह है कि इसे लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है। यानी किसान भाई इसे मंडी में सही समय पर बेचकर जबरदस्त मुनाफा कमा सकते हैं। इस किस्म का नाम है धार किस्म जो मध्य प्रदेश की एक प्रसिद्ध और उच्च पैदावार देने वाली किस्म है।
लहसुन की धार किस्म की खासियत
बुवाई का सही समय और खेती की तकनीक
लहसुन की धार किस्म की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक करना सबसे अच्छा माना जाता है। इसके लिए खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए और मिट्टी में पुरानी गोबर की खाद अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। इसकी खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है जिसमें नमी को लंबे समय तक बनाए रखने की क्षमता हो।
बुवाई के लिए कलियों को गांठ से अलग करके इस्तेमाल करना चाहिए और हमेशा स्वस्थ एवं रोगमुक्त कली का चयन करना चाहिए। एक हेक्टेयर में लगभग 5 क्विंटल बीज पर्याप्त होते हैं। फसल को अच्छे से बढ़ाने के लिए खरपतवार नियंत्रण और कीट प्रबंधन का ध्यान रखना भी जरूरी है। बुवाई के बाद लहसुन की धार किस्म की फसल लगभग 120 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है।
उत्पादन और मुनाफा
दोस्तों अब बात करते हैं असली खुशखबरी की। लहसुन की धार किस्म की उपज क्षमता वाकई जबरदस्त है। एक हेक्टेयर में किसान भाई 100 से 125 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। अगर बाजार में लहसुन की कीमत अच्छी मिल जाए तो किसान लाखों रुपये का मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं। इसकी खासियत यह है कि अगर मंडी भाव तुरंत अच्छा न भी मिले तो आप इसे स्टोर करके बाद में बेच सकते हैं और ज्यादा दाम हासिल कर सकते हैं।
अगर आप भी लहसुन की खेती करने का सोच रहे हैं तो धार किस्म आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प है। यह न सिर्फ मोटी और स्वादिष्ट कलियों वाली होती है बल्कि इसकी स्टोरेज क्षमता और रोग प्रतिरोधक ताकत इसे और भी खास बना देती है। सही समय पर बोई गई यह किस्म किसानों को निश्चित रूप से लाखों का मुनाफा दे सकती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। खेती शुरू करने से पहले अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की स्थिति के अनुसार स्थानीय कृषि वैज्ञानिक या अधिकारी से सलाह जरूर लें।