समूचे भारतवर्ष समेत विदेशों के भी तमाम देशों में देवभूमि और स्वर्गलोक के नाम से जाना जाने वाला उत्तर भारतीय राज्य उत्तरांचल के जिला चंपावत में देवीधुरा नामक स्थान में स्थापित माँ बाराही धाम में प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन विश्व प्रसिद्ध अनोखा बग्वाल यानी पत्थर युद्ध खेला जाता है। यह पत्थर युद्ध केवल चार खामों व सात तोकों के लोगों के मध्य एक व्यक्ति के खून के बराबर खून बहने तक चलता हैं। इसी मंदिर में श्रावण शुक्ल की एकादशी से पूर्णमाशी तक भव्य अषाड़ी कौतिक मेला भी लगता है।
धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल देवीधुरा में हर वर्ष सावन माह में लगभग 11 दिन तक लगा रहने वाला अषाड़ी कौतिक अर्थात् अषाड़ी मेले का मुख्य आकर्षण बग्वाल है। रक्षा बंधन के त्यौहार के दिन माँ बाराही धाम देवीधुरा के प्रांगण में बालिग खाम, लमगडिय़ा खाम, चम्याल खाम और दरोंज खाम के मध्य खेला जाने वाला यह पत्थर युद्ध तब तक चलता है, जब तक मंदिर पुजारी को मंदिर प्रांगण में एक व्यक्ति के खून के बराबर खून बह जाने की दिव्यानुभूति नहीं हो जाती। दिव्यानुभूति हो जाने के बाद पुजारी शंख व घंटियों की ध्वनि के अलावा स्वयं भी पत्थर युद्ध हो रहे प्रांगण में जाकर युद्ध विराम करने की घोषणा करता है।
बग्वाल विराम होने के बाद मंदिर प्रांगण से पत्थर स्वत: गायब हो जाते हैं। पत्थर युद्ध खेलने के दौरान चोटिल हुए लोग अपनी चोट पर बिच्छूघास भी लगाते हैं। माना जाता है कि उन घावों अथवा चोट को बिच्छूघास शीघ्र भर ठीक कर देती है जो बग्वाल खेलने के दौरान बने हों। वैसे अब मां बाराही धाम देवीधुरा के अतिरिक्त कहीं और बग्वाल खेला नहीं जाता किंतु कुमाऊँ का इतिहास नामक अपने शोध ग्रंथ में कुर्मांचल केसरी स्व. श्री बद्रीदत्त पाण्डेय जी ने लिखा है कि आदिकाल में चौड़ा, सीलिंग व द्वाराहाट में भी बग्वाल हुआ करता था जो अब नहीं होता।
किंवदती के मुताबिक पहले प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन इस मंदिर में एक व्यक्ति की बलि चढ़ाई जाती थी। बलि का ग्रास कौन बनेगा, इसकी सूचना मंदिर के पुजारी को मां बाराही द्वारा सपने में दी जाती थी। एक बार ऐसे युवक की बारी आ गई थी, जो अपने वंश में इकलौती जीवित संतान थी। अब यह सूचना युवक के मां को मिली तो वह रोते-बिलखते मां बाराही मंदिर में आयी और मां से अपने बेटे को बख्श देने की प्रार्थना की थी।
कहते हैं, तभी से मां ने यह आदेश दिया है कि अब से प्रतिवर्ष मेरे मंदिर प्रांगण में पत्थर युद्ध खेलें जिनके प्रारंभ और विराम करने संबंधी अनुभूति स्वयं मैं पुजारी को करवाऊंगी। बग्वाल के अगले दिन यहां डोला उठता है, उसे छूना शुभ माना गया है। यहां रात में भी मेला लगता है। लाखों लोग जिसका आनंद लेते हैं।
मंदिर परिसर में गब्यौरी नाम से एक गुफा भी है, जिसमें सर्वप्रथम प्रवेश करना चाहिए, ऐसी मान्यता है। जनश्रुति के मुताबिक मां बाराही की इच्छा बिना गब्यौरी में प्रवेश कर पाना कठिन है। गब्यौरी का प्रवेश द्वार तो अत्यंत छोटा है ही, उसकी आंतरिक चौड़ाई भी कम है।
देवीधुरा, काठगोदाम, हल्द्वानी, लालकुआं अथवा किसी भी स्टेशन से बस, जीप और कार द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह पवित्र स्थल समुद्र तल से 6500 फीट ऊँचा है।