विजय सदैव सत्य की होती है। सत्य के मार्ग पर चलना कठिन है पर असम्भव नहीं। सत्य के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है।
वेदों, उपनिषदों और सच्चे संतों ने सत्य की महिमा का गुणगान किया है, जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उन्हें पग-पग पर परमात्मा का सम्बल मिलता रहता है।
सत्य के मार्ग में बाधा बनने वाले परमात्मा के कोप के भाजन बनते हैं, क्योंकि सत्य के मार्ग पर जो चलते हैं वे किसी के लिए न बुरा सोचते हैं न किसी का अहित करते हैं। वे सदा ही सबकी भलाई की सोचते हैं। सबकी भलाई में ही उनकी भलाई का भाव छुपा हुआ है, वे अपने कर्तव्यों को पालने में सदैव उद्यत रहते हैं। इसी कारण उन पर परमात्मा की कृपा दृष्टि एवं अनुदान वरदान सदा ही बरसते रहते हैं।
सत्यवादी व्यक्ति की कथनी और करनी में कोई भिन्नता नहीं देखी जाती। कथनी और करनी में जहां भिन्नता पाई जाती है, वहां असत्य और अधर्म का वास होता है। सत्य के दर्शन के लिए कथनी और करनी में समानता अनिवार्य है, जिनकी कथनी और करनी में एकरूपता नहीं होती, उनकी विश्वसनियता सदैव संदेह के घेरे में रहती है। प्रबुद्ध समाज कभी उनकी कथनी पर विश्वास नहीं करता।