मुख्य शयनकक्ष, जिसे मास्टर बेडरूम भी कहा जाता है। घर के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) या उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर होना चाहिए। अगर घर में एक मकान की ऊपरी मंजिल है तो मास्टर बेडरूम ऊपरी मंजिल के दक्षिण-पश्चिम कोने में होना चाहिए। शयनकक्ष में सोते समय हमेशा सिर दीवार से सटाकर सोना चाहिए। पैर दक्षिण और पूर्व दिशा में करके नहीं सोना चाहिए। उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोने से स्वास्थ्य लाभ तथा आर्थिक लाभ की संभावना रहती है। पश्चिम दिशा की ओर पैर करके सोने से शरीर की थकान निकलती है, नींद अच्छी आती है।
इसमें कोई शक नहीं कि बेडरूम घर का वह स्थान होता है, जहां व्यक्ति आराम करता है और काम के बाद अपना ज्यादातर समय बिताता है, लेकिन कई बार ऐसा महसूस होता है कि अपने बेडरूम में अच्छी नींद नहीं आयी। कई बार सुबह उठने पर भी नींद पूरी नहीं हो पाती है और ताजगी का एहसास नहीं हो पाता है तो इसका साफ मतलब है कि बेडरूम में निगेटिव एनर्जी की मात्रा पॉजिटिव एनर्जी से ज्यादा है। निगेटिव एनर्जी को खत्म करने के लिए ये वास्तु टिप्स अपनाएं:-
– बेडरूप कभी भी पूरी तरह से क्लोज्ड यानी बंद नहीं होना चाहिए।
– ताजी हवा आने के लिए कमरे में एक उपयुक्त खिड़की अवश्य होनी चाहिए।
– बेडरूम में झूठे बर्तन बहुत अधिक समय तक रखना अच्छा नहीं माना गया है।
– बेडरूम में किसी नकारात्मक तस्वीर को न टांगे।
– बिस्तर के सामने आईना कतई न लगाएं।
– शयनकक्ष के दरवाजे के सामने पलंग न लगाएं।
– डबलबेड के गद्दे अच्छे से जुड़े हुए होने चाहिए।
– शयन कक्ष के दरवाजे करकराहट की आवाजें नहीं करने चाहिए।
– शयनकक्ष में धार्मिक चित्र नहीं लगाने चाहिए।
– पलंग का आकार यथासंभव चौकोर रखना चाहिए।
– पलंग की स्थापना छत के बीम के नीचे नहीं होनी चाहिए।
– लकड़ी से बना पलंग श्रेष्ठ रहता है। लोहे से बने पलंग वर्जित कहे गए हैं।
– रात्रि में सोते समय नीले रंग का लैम्प जलाएं।
– कभी भी सिरहाने पानी का जग अथवा गिलास रखकर न सोएं।
– शयनकक्ष में कमरे के प्रवेश द्वार के सामने वाली दीवार के बाएं कोने पर धातु की कोई चीज लटकाकर रखें।
– वास्तु शास्त्र के अनुसार यह स्थान भाग्य और संपत्ति का क्षेत्र होता है।
– इस दिशा में दीवार में दरारें हों तो उसकी मरम्मत करवा दें। इस दिशा का कटा होना भी आर्थिक नुकसान का कारण होता है।
घर में किचन और टॉयलेट पास-पास न हो
अधिकतर बीमारियां किचन और टॉयलेट से निकलती है। जब आप घर बनवाएं या खरीद रहे हों या किराए पर ले रहे हों तो यह ध्यान रखना चाहिए कि घर में किचन और टॉयलेट पास-पास न हो।
वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसा होना बीमारियों को बढ़ावा देता है।
स्नानघर: घर में या घर के आंगन में टॉयलेट और बाथरूम बनाते वक्त वास्तु का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इसके बुरे प्रभाव के कारण घर का वातावरण बिगड़ सकता है। दोनों ही स्थानों को ज्योतिष में राहू और चंद्र की शरारत का स्थान माना गया है। स्नानगृह में चंद्रमा का वास है तथा शौचालय में राहू का। शौचालय और बाथरूम एक साथ नहीं होना चाहिए अर्थात चंद्र और राहू का एकसाथ होना चंद्रग्रहण है। यदि ऐसा है तो यह गृह कलह का कारण बन जाएगा। वास्तु ग्रंथ ‘वि.कर्मा प्रकाश में इस बारे में विस्तार से बताया गया है।
शौचालय: यह मकान के नैत्रत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण में अथवा नैत्रत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना चाहिए। इसके अलावा शौचालय के लिए वायव्य कोण दक्षिण दिशा के मध्य का स्थान भी उपयुक्त बताया गया है। शौचालय में सीट इस प्रकार हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर होना चाहिए। शौचालय की नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए शौचालय में एक्जास्ट फेन चलाकर उपयोग करना चाहिए। स्नानघर पूर्व दिशा में होना चाहिए। नहाते समय हमारा मुंह अगर पूर्व या उत्तर में है तो लाभदायक माना जाता है। पूर्व में उजालदान होना चाहिए। बाथरूम में वॉशबेशिन को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण दरवाजे के ठीक सामने नहीं हो।
विशेष
– नल से पानी का टपकते रहना वास्तु शास्त्र में आर्थिक नुकसान का बड़ा कारण माना जाता है।
– जिसके घर में जल की निकासी दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होती है उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ अन्य कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
– उत्तर एवं पूर्व दिशा में जल की निकासी को आर्थिक दृष्टि से शुभ माना गया है।
– जल संग्रहण का स्थान ईशान कोण को बनाएं।
अतिथि कक्ष: कुछ वास्तुकार अतिथि कक्ष को वायव्य कोण में होना लाभप्रद मानते हैं। इसका कारण है कि इस दिशा के स्वामी वायु होते हैं तथा ग्रह चंद्रमा। वायु एक जगह नहीं रह सकते तथा चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ता है। अत: वायव्य कोण में अतिथि गृह होने पर अतिथि कुछ ही समय तक रहता है तथा पूर्व आदर-सत्कार पाकर लौट जाता है, जिससे पारिवारिक मतभेद पैदा नहीं होते।
अतिथि देवता के समान होता है तो उसका कक्ष उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए। यह मेहमान के लिए शुभ होता है। घर की उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में अतिथि कक्ष (गेस्ट रूम) होना उत्तम माना गया है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह दिशा केवल घर के स्वामी के लिए होती है। उत्तर-पश्चिम दिशा आपके मेहमानों के ठहरने के लिए सबसे सुविधाजनक दिशा है। आप आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्वी दिशा में भी गेस्ट रूम बना सकते हैं।
अतिथि को ऐेसे कमरे में ठहराना चाहिए, जो अत्यंत साफ व व्यवस्थित हो, जिसे देखकर मेहमान का मन खुश हो जाए। कभी भी बेडरूम में भारी लोहे का सामान नहीं रखना चाहिए, अन्यथा अतिथि को लगेगा कि उसे बोझ समझा जा रहा है। इस अवस्था में मेहमान तनाव महसूस कर सकता है। अगर आप अपना गेस्ट रूम दक्षिणी दिशा में बनाना चाहते हैं तो वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श लें। गेस्ट रूम का दरवाजा वास्तु के हिसाब से पूर्व दिशा में तथा दूसरा दक्षिण दिशा में होना चाहिए। गेस्ट रूम में खिड़की उत्तर दिशा, पश्चिमी दिशा में या फिर उत्तर-पूर्व कोने में होनी चाहिए।
यदि गेस्ट रूम वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) या आग्नेय कोण में है तो आपको इस रूम का बाथरूम नैऋय कोण में बनाना चाहिए? और उत्तर पूर्वी कोने में एक खिड़की जरूर रखनी चाहिए।
उत्तर-पूर्वी दिशा में बना पूर्वमुखी या उत्तर मुखी दरवाजा गेस्ट रूम के लिए सबसे उत्तम होता है।
कैसा और कहां हो पूजा घर
घर में पूजा के कमरे का स्थान सबसे अहम होता है। इस स्थान से ही हमारे मन और मस्तिष्क में शांति मिलती है तो यह स्थान अच्छा होना जरूरी है। आपकी आय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि घर में पूजा घर कहां है। यहां हिदायत यह है कि किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही पूजा घर बनवाएं अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
वास्तु की नजर से पूजा घर
घर के बाहर एक अलग स्थान देवता के लिए रखा जाता था, जिसे परिवार का मंदिर कहते थे। बदलते दौर के साथ एकल परिवार का चलन बढ़ा है, इसलिए पूजा का कमरा घर के भीतर ही बनाया जाने लगा है। अतएव वास्तु अनुसार पूजा घर का स्थान नियोजन और सजावट की जाए तो सकारात्मक ऊर्जा अवश्य प्रवाहित होती है। वास्तु के अनुसार भगवान के लिए उत्तर-पूर्व की दिशा श्रेष्ठ रहती है। इस दिशा में पूजा घर स्थापित करें। यदि पूजाघर किसी और दिशा में हो तो पानी पीते समय मुंह ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखें। पूजा घर के ऊपर या नीचे की मंजिल पर शौचालय या रसोईघर नहीं होना चाहिए, न ही इनसे सटा हुआ। सीढिय़ों के नीचे पूजा का कमरा बिल्कुल नहीं बनवाना चाहिए।
सोने की सही स्थिति
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय सिर उत्तर और पैर दक्षिण दिशा में होना अच्छा नहीं माना गया है। इस स्थिति में सोने से न केवल नींद कम आने की शिकायत पाई गई है, बल्कि शारीरिक कमजोरी का आभास भी होता है। परिणामस्वरूप बीमारियां होने के चांस बढ़ जाते हैं। प्राय: इस दिशा में सोने से सिरदर्द और अनिद्रा की शिकायत रहती है, इसलिए विवाहित दंपती को दक्षिण दिशा में सिर करके सोना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना बेहतर माना गया है ऐसी स्थिति में स्वाभाविक तौर पर पैर उत्तर दिशा में रहेंगे। शास्त्रों के साथ-साथ प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, सेहत के लिहाज से इस तरह सोने का निर्देश दिया गया है। यह मान्यता भी वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।
उत्तर की ओर क्यों न रखें सिर?
दरअसल, पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति होती है, इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर लगातार चुंबकीय धारा प्रवाहित होती रहती है। जब हम दक्षिण की ओर सिर करके सोते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे सिर की ओर से प्रवेश करती है और पैरों की ओर से बाहर निकल जाती है। ऐसे में सुबह जागने पर लोगों को ताजगी और स्फूर्ति महसूस होती है।
अगर इसके विपरीत करें सिर अगर इसके विपरीत दक्षिण की ओर पैर करके सोने पर चुम्बकीय धारा पैरों से प्रवेश करती है और सिर तक पहुंचेगी। इस चुंबकीय ऊर्जा से मानसिक तनाव बढ़ता है और सवेरे जागने पर मन भारी-भारी होता रहता है।
पूरब की ओर भी रख सकते हैं सिर: दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि सिर पूरब और पैर पश्चिम दिशा की ओर रखा जाए, कुछ मान्यताओं के अनुसार इस स्थिति को बेहतर बताया गया है। दरअसल, सूरज पूरब की ओर से निकलता है। सनातन धर्म में सूर्य को जीवनदाता और देवता माना गया है। ऐसे में सूर्य के निकलने की दिशा में पैर करना उचित नहीं माना जा सकता। इस वजह से पूरब की ओर सिर रखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र में सोने की सही दिशा पूर्व-पश्चिम भी मानी गई है। पश्चिम-पूर्व दिशा भी अच्छी मानी गई है।
सोने से जुड़े कुछ जरूरी दिशा निर्देश
– शास्त्रों में शयन संध्या के वक्त खासकर गोधूलि बेला में सोने की मनाही है।
– अगर बहुत जरूरी काम न हो तो रात में देर तक नहीं जागना चाहिए।
– जहां तक संभव हो, सोने से पहले चित्त शांत रखने की कोशिश करना चाहिए।
– सोने से पहले प्रभु का स्मरण करना चाहिए और इस अनमोल जीवन के लिए उनके प्रति आभार जताना चाहिए।
घर की दिशा: घर का मुख्य द्वार सिर्फ पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। हालांकि वास्तु शास्त्र मानते हैं कि घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वे चार दिशाएं हैं- ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम। लेकिन हम यहां सलाह देंगे कि सिर्फ दो ही दिशाओं में से किसी एक का चयन करें। पूर्व या उत्तर का द्वार इसलिए कि पूर्व से सूर्य निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है। उत्तर इसलिए कि उत्तरी ध्रुव से आने वाली हवाएं अच्छी होती हैं और दक्षिणी ध्रुव से आने वाली हवाएं नहीं। घर को बनाने से पहले हवा, प्रकाश और ध्वनि के आने के रास्तों पर ध्यान देना जरूरी है।
भूमि का ढाल: सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर होगा तो अत्यंत उपयुक्त रहेगा। सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव धरती के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी ध्रुव जहां बर्फ से पूरी तरह ढंका हुआ एक सागर है, जो आर्कटिक सागर कहलाता है, वहीं दक्षिणी ध्रुव ठोस धरती वाला ऐसा क्षेत्र है, जो अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है। ये ध्रुव वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव से कहीं ज्यादा ठंडा है। यहां मानवों की बस्ती नहीं है। इन धु्रवों के कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व उत्तर एवं ईशान की ओर जमीन का ढाल होना चाहिए।
कैसी हो आपके आवास/ भवन/ मकान की वास्तु रचना
1. घर का मुख्य द्वार 4 में से किसी 1 में हो। वे 4 दिशाएं हैं-ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम।
2. घर के सामने आंगन और पीछे भी आंगन हो, जिसके बीच में तुलसी का एक पौधा लगा हो।
3. घर के सामने या निकट तिराहा-चौराहा नहीं होना चाहिए।
4. घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए अर्थात बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे की दीवार के दाएं ‘शुभ और बाएं ‘लाभ लिखा हो।
5. घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा…. की आकृति लगाएं।
6. घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान का कक्ष हो। नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।
7. घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र या मूर्ति न रखें। घर में मंदिर न बनाएं।
8. घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच का स्थान) खाली रखें।
9. घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान न रखें।
10. घर के निकट हो मंदिर …… आसपास तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
11. घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक वस्तुओं का संग्रह न करें और अटाला भी इकट्ठा न करें।
12. घर में सीढिय़ा सदैव विषम संख्या (5, 7, 9) में होनी चाहिए।
13. उत्तर, पूर्व तथा उत्तर पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए।
14. घर के ऊपर केसरिया ध्वज लगाकर रखें।
15. घर में किसी भी तरह के नकारात्मक पौधे या वृक्ष रोपित न करें।
पंडित दयानंद शास्त्री-विभूति फीचर्स