मुजफ्फरनगर में RDF कचरे को जलाने पर पेपर मिल एसोसिएशन अध्यक्ष का तर्क, बोले—प्रदूषण के लिए उद्योग नहीं, वाहन जिम्मेदार
मुजफ्फरनगर। जनपद में बढ़ते प्रदूषण और आरडीएफ (RDF) ईंधन के उपयोग को लेकर चल रहे विवाद के बीच पेपर मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज अग्रवाल ने आरडीएफ कचरे को जलाने को लेकर अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के लिए उद्योगों को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है, क्योंकि सीक्यूएम (CQM) की रिपोर्ट के अनुसार केवल 20 प्रतिशत प्रदूषण उद्योगों से होता है, जबकि 50 प्रतिशत से अधिक प्रदूषण मोटर वाहनों से फैलता है।
उन्होंने बताया कि आरडीएफ, नगर ठोस कचरे (MSW) से छना हुआ लगभग 25 प्रतिशत सामग्री होती है, जिसे पूरी तरह साफ करने के बाद ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पेपर मिलों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए आधुनिक उपकरण लगे हुए हैं, जिनसे धुएं को पूरी तरह साफ करके ही बाहर छोड़ा जाता है। साथ ही, चिमनियों पर ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम लगे हैं, जिनकी जानकारी 24 घंटे उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कंप्यूटर पर उपलब्ध रहती है।
पंकज अग्रवाल ने कहा कि हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही है। ठंडी हवा और वातावरण में नमी के कारण धुआं ऊपर नहीं जा पाता और नीचे ही ठहर जाता है, जिससे दो-तीन महीने तक प्रदूषण अधिक बना रहता है। उन्होंने पुराने समय का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले घरों में चूल्हे और अंगीठियां जलती थीं, तब भी धुएं की मोटी परत दिखाई देती थी।
आरडीएफ को लेकर चल रहे विरोध पर उन्होंने कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है। अगर आरडीएफ से ही प्रदूषण बढ़ता, तो बागपत और गुरुग्राम जैसे शहरों में, जहां आरडीएफ नहीं जलता, वहां AQI अधिक क्यों रहता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कभी गीला या खराब माल ट्रकों में आ जाता है, तो उसे जांच के बाद वापस कर दिया जाता है और जलाया नहीं जाता। गीला माल बॉयलर में डालने से भारी नुकसान हो सकता है।
अंत में उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि आरडीएफ प्रदूषण की बड़ी वजह है। असल समस्या बढ़ते वाहनों और सर्दियों के मौसम की परिस्थितियों से जुड़ी है, जिस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
