बासमती चावल के एकमात्र वैश्विक आपूर्तिकर्ता होने के नाते भारत और पाकिस्तान लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार पर हावी होने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। जहां भारत बासमती की 34 किस्में उगाता है, वहीं पाकिस्तान में 24 हैं। भारत सरकार 1990 के दशक के अंत से बासमती की रक्षा कर रही है। ले मोंडे की रिपोर्ट के अनुसार जब एक अमेरिकी ब्रांड ने टेक्सास में उगाए जाने वाले ‘बासमती चावल की किस्मों पर पेटेंट दायर करने की कोशिश की तो भारत और पाकिस्तान दोनों ने आपत्ति जताई और केस जीत लिया।बासमती की रक्षा के लिए भारत का पहला कदम सुगंधित चावल के लिए भौगोलिक उत्पादन क्षेत्रों को परिभाषित करना था। इनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान केवल 2021 में बासमती के लिए बढ़ते क्षेत्रों को पहचान सकता है।ले मोंडे ने कहा कि यूरोपीय संघ में ‘बासमती शब्द का उपयोग करने का विशेष अधिकार प्राप्त करने के लिए यूरोपीय आयोग से संरक्षित भौगोलिक संकेत (पीजीआई) के लिए जुलाई 2018 में भारत के आवेदन पर भी दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच युद्ध चल रहा है । पाकिस्तान ने इस कदम का कड़ा विरोध करता रहा है।
इस साल बताया जाता है पाकिस्तान उत्पादन में वृद्धि के बीच कम कीमतों पर मुख्य उत्पाद प्रदान कर रहा है। सरकार ने हाल ही में एक बयान में कहा कि औसत से कम बारिश के कारण आठ साल में पहली बार भारत का चावल उत्पादन भी गिर सकता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार फसल वर्ष में जून तक चावल का उत्पादन घटकर 123.8 मिलियन मीट्रिक टन होने की संभावना है।
ऐसे समय पाकिस्तान खरीदारों को प्रतिस्पर्धी कीमतें प्रदान कर रहा है। दरअसल प्रतिद्वंद्वी देश चावल की इस प्रीमियम क्वालिटी का एकमात्र वैश्विक निर्यातक हैं। 2023 में भारत का बासमती चावल निर्यात 4।9 मिलियन मीट्रिक टन था जो एक साल पहले की तुलना में 11.5 प्रतिशत अधिक है। ऐसा तब हुआ जब केंद्र ने पिछले अगस्त में सुगंधित चावल के शिपमेंट पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 1,200 डॉलर प्रति टन लगाया और बाद में अक्टूबर में इसे घटाकर 950 डॉलर कर दिया। एक रिपोर्ट के अनुसार एमईपी लागू होने के बाद पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में भारतीय बासमती चावल के निर्यात पर असर पड़ा था लेकिन वे जल्दी ही ठीक हो गए। मिल मालिकों ने उस समय चेतावनी दी थी कि बासमती चावल पर निर्यात प्रतिबंध से चावल उगाने वाले राज्यों में किसानों और व्यापारियों को नुकसान होगा और अंतत: पाकिस्तान के निर्यात उद्योग को फायदा होगा।
गौरतलब है कि बासमती चावल का निर्यात भारत के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सुगंधित चावल के शिपमेंट से पिछले साल भारत को 5.4 बिलियन डॉलर प्राप्त करने में मदद मिली थी। ऊंची कीमतों के कारण 2022 से लगभग 21 प्रतिशत अधिक है। बासमती चावल की घरेलू खपत कुल उत्पादन का केवल 2-3 प्रतिशत है। बासमती फसल का अधिग्रहण भारत सरकार द्वारा नहीं बल्कि निजी व्यापारियों और निर्यातकों द्वारा किया जाता है। हालांकि, समाचारों के अनुसार, दक्षिण एशियाई देश बासमती चावल के सबसे बड़े खरीदार ईरान को भारत के शिपमेंट में 2023 में 36 प्रतिशत की कमी आई। लेकिन इराक, ओमान, कतर और सऊदी अरब से उच्च मांगें थीं, जिससे अंतर को पाटने में मदद मिली। भारतीय बासमती चावल के निर्यात में इस जनवरी से गिरावट शुरू हो गई है और निकट भविष्य में इसमें और गिरावट आ सकती है। लाल सागर के माध्यम से शिपिंग में व्यवधान के कारण बढ़ी हुई माल ढुलाई लागत के कारण खरीदार खरीदारी में देरी कर रहे हैं।
अब भारत की स्थिति से पाकिस्तान को फायदा हो सकता है। पिछले साल जब पाकिस्तान उत्पादन समस्याओं का सामना कर रहा था, तब खरीदार स्टॉक करने के लिए दौड़ रहे थे। हालांकि इस साल पाकिस्तान उत्पादन बढऩे के कारण भारत की तुलना में कम कीमत की पेशकश कर रहा है। राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ पाकिस्तान (आरईएपी) के अध्यक्ष चेला राम केवलानी के अनुसार इस्लामाबाद का कुल चावल शिपमेंट 2023-24 वित्तीय वर्ष में 5 मिलियन टन तक बढऩे की संभावना है जो पिछले साल 3.7 मिलियन टन से अधिक है।
एक न्यूज एजेंसी ने बासमती चावल के उद्योग से जुड़े अधिकारियों के हवाले से बताया है कि पाकिस्तान से कम आपूर्ति और आयातक देशों द्वारा भंडारण के प्रयासों के कारण भारत का बासमती चावल का निर्यात एक साल पहले की तुलना में 11।5 फीसदी बढ़कर 2023 में 4.9 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। यह साल 2020 में पांच मिलियन टन के रिकॉर्ड उच्च स्तर से कुछ ही कम है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि ऊंची कीमतों की वजह से बासमती चावल शिपमेंट ने दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत को साल 2023 में रिकॉर्ड 5.4 बिलियन डॉलर जुटाने में मदद की। यह पिछले वर्ष से करीब 21 फीसदी ज्यादा है।
केआरबीएल लिमिटेड के एक थोक निर्यातक के अनुसार पाकिस्तानी रुपये की कीमत में गिरावट ने पाकिस्तान के निर्यात को और अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है जो नये आयामों को खोलता है। इस बीच भारत में बासमती चावल के उत्पादन में अनुमानित 10 फीसदी की वृद्धि के बीच निर्यात मांग में कमी के कारण देश में बासमती की कीमतों में गिरावट आनी शुरू हो गई है। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारतीय बासमती चावल के सबसे बड़े खरीदार ईरान ने साल 2023 में खरीद में 36 फीसदी की कमी की लेकिन इराक, ओमान, कतर और सऊदी अरब को उच्च शिपमेंट ने कमी को पूरा कर दिया।
नई दिल्ली स्थित एक निर्यातक के अनुसार सरकार द्वारा बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाए जाने के कारण सितंबर और अक्टूबर में भारतीय निर्यात की गति कम हो गई थी, लेकिन जल्द ही इसमें सुधार हो गया । लाल सागर के माध्यम से शिपिंग में व्यवधान के कारण माल ढुलाई लागत में वृद्धि के कारण खरीदार खरीदारी में देरी कर रहे हैं। उनका कहना था कि खरीदारों के पास पर्याप्त सामान है और उन्हें जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है।
बताया जाता है कि इंडस्ट्री इस बात को लेकर परेशान है कि केंद्र सरकार हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश का दौरा करने और नए एमईपी को लागू करने के बाद बासमती उद्योग की स्थिति का आकलन करने के बाद केंद्रीय टीमों द्वारा प्रदान की गई सिफारिशों का पालन नहीं कर रही है। सेतिया ने कहा कि सरकार जानती है कि कैसे हमारे निर्यातक दो अंतरराष्ट्रीय खाद्य मेलों के दौरान कई देशों में भारतीय बासमती की भारी मांग के बावजूद एक भी निर्यात ऑर्डर प्राप्त किए बिना खाली हाथ लौट आए। पहला मेला तुर्की के इस्तांबुल में 6 से 9 सितंबर के बीच लगा था। वहीं, दूसरा मेला दूसरा इराक में 19 से 21 सितंबर तक आयोजित किया गया था।
आपको बता दे कि केंद्र ने 25 अगस्त को बासमती चावल पर एमईपी लागू किया। इसने पंजाब और हरियाणा जैसे बासमती का निर्यात करने वाले प्रदेश के किसानों को चिंता में डाल दिया। निर्यातकों की लगातार मांग के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 25 सितंबर को 850 डॉलर प्रति मीट्रिक टन के एमईपी का संकेत दिया था लेकिन शनिवार को उपभोक्ता मामले और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने एक सर्कुलर जारी किया। इसमें कहा गया कि बासमती चावल के लिए पंजीकरण कम आवंटन सर्टिफिकेट के लिए व्यवस्था (जो 25 अगस्त को जारी की गई थी) 15 अक्टूबर के बाद भी अगले आदेश तक जारी रह सकती है हालांकि जब करीब तीन हफ्ते सप्ताह तक इस फैसले के बारे में कोई नोटिफिकेशन नहीं आया तो बाद में बासमती की कीमतों में गिरावट शुरू हो गई। वजह, एक्सपोर्टर्स को आशंका थी कि सरकार का फैसला प्रतिकूल हो सकता है।
-अशोक भाटिया