नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने आजादी के 75 साल के अवसर पर अमृत काल का जिक्र करते हुए कहा है कि यह समय औपनिवेशिक मानसिकता और विदेशी दासता के प्रभाव से मुक्त होने का समय है। लेकिन, देश में शहरों के नाम को बदलने को लेकर भी अनावश्यक रूप से धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता का मुद्दा बनाया जा रहा है।
दरअसल, हाल ही में देश के सभी विपक्षी दलों ने भारत बनाम इंडिया के विवाद को लेकर मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा था। दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित एक पुस्तक के विमोचन समारोह में बोलते हुए संघ के वरिष्ठ नेता सुनील आंबेकर ने कहा कि भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है और ब्रिटिश काल से पहले भी भारत ने कई लड़ाईयां रही हैं।
उन्होंने इस अवसर पर औपनिवेशिक मानसिकता और विदेशी दासता के प्रभाव से मुक्त होने की वकालत करते हुए कहा कि सिर्फ ब्रिटिश काल ही नहीं बल्कि उससे पहले के औपनिवेशिक मानसिकता और विदेशी दासता के प्रभाव से भी मुक्त होने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी यह पूछा जाता है कि नाम क्यों बदला जाता है। मतलब जब बंबई का नाम बदल कर मुंबई किया तो वह धर्मनिरपेक्ष है, जब मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई किया तो वह धर्मनिरपेक्ष है तो इलाहाबाद का नाम बदलकर जब प्रयागराज किया गया तो वह धर्मनिरपेक्ष क्यों नहीं हैं ? प्रयागराज करना भी तो धर्मनिरपेक्षता है लेकिन कंफ्यूज्ड औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त होने के कारण यह सवाल खड़ा किया जाता है।
सुनील आंबेकर ने शहरों के नाम बदलने पर हंगामा खड़ा करने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं पर बिना नाम लिए निशाना साधते हुए कहा कि अगर ब्रिटिश काल की बातों एवं स्मृतियों को हटाया तो ठीक है, यह चलेगा लेकिन अगर मुगल आक्रांताओं के समय की कुछ बातों को हटाया या बदला तो वो सांप्रदायिक कैसे हो जाता है ?
उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के कारण ही भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी चीजों को पिछड़ा कहा जाता है जबकि यह सब हमारे लिए आधुनिकता है। मार्डन होने का ठेका सिर्फ कुछ देशों या विचारधारा को नहीं मिल सकता है। यह सार्वभौमिक है।
उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा विश्व शांति और कल्याण के लिए कार्य किया है, भारत ने हजारों साल तक दुनिया को राह दिखाई है और आने वाले हजारों सालों तक दुनिया को राह दिखाने वाला है।
संघ नेता ने कहा कि इतिहास में जीना ठीक नहीं है लेकिन इतिहास से सबक लेकर आगे बढ़ना जरूरी है। कई विषयों पर विश्व हमारी तरफ देख रहा है। दुनिया भर में चॉइस ऑफ कल्चर का विषय बड़ा बनता जा रहा है और पूरी दुनिया के सामने यह सवाल है कि वह किस संस्कृति के तहत जीना चाहता है।
उन्होंने यह भी कहा कि विदेशों में जाकर पढ़ाई करने वाले भारतीय विद्यार्थी उन देशों में भारत के कल्चर एंबेसडर हैं।