नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अपने आधिकारिक आवास पर मारी मात्रा में नकदी बरामदगी से इनकार किया है।
उच्चतम न्यायालय की ओर से जारी दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा अपने आधिकारिक आवास पर कथित तौर पर भारी मात्रा में रुपए बरामदगी की सूचनाओं को (न्यायमूर्ति वर्मा को) फंसाने और बदनाम करने की साजिश की तरह होने का दावा किया।
शीर्ष अदालत की बेवसाइट पर जारी 25 पन्नों की रिपोर्ट (जिसके कुछ हिस्से पर काली स्याही लगी होने की वजह से अस्पष्ट हैं) में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, “न तो मैंने और न ही मेरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी उस स्टोररूम (जहां 14 मार्च 2025 की रात आग लग ने की घटना हुई) में कोई नकदी या मुद्रा जमा कर रखी थी।”
उन्होंने दावा किया कि पूरी घटना हाल ही में हुई घटनाओं के एक क्रम का हिस्सा है, जिसमें दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर प्रसारित निराधार आरोप भी शामिल हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वरियता क्रम में द्वितीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा ने अपनी ओर से किसी भी नकदी की बरामदगी से इनकार करते हुए कहा, “मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि मेरे या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा उस स्टोररूम में कभी भी कोई नकदी नहीं रखी गई थी और इस बात की कड़ी निंदा करता हूं कि कथित नकदी हमारी थी।”
शीर्ष अदालत वेबसाइट पर शनिवार देर रात उपलब्ध रिपोर्ट में मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय के प्रश्नों के उत्तर के अनुसार, न्यायमूर्ति वर्मा ने स्टोररूम के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले स्थान से नकदी की कोई बोरी बरामद होने से इनकार किया है, जहां सभी निजी और सीपीडब्ल्यूडी कर्मचारी आसानी से पहुंच सकते हैं और पीछली गेट से भी नकदी की कोई बोरी बरामद होने से इनकार किया है।
जांच के दौरान न्यायाधीश वर्मा ने अपने आवास पर हुई आग की घटना के दृश्य होने दावा करने वाले वीडियो दिखाए जाने पर कहा, “मैं वीडियो की सामग्री देखकर पूरी तरह से हैरान रह गया, क्योंकि उसमें कुछ ऐसा दिखाया गया था जो मौके पर नहीं मिला था, जैसा कि मैंने देखा था….यह स्पष्ट रूप से मुझे फंसाने और बदनाम करने की साजिश लग रही थी।”
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, “यह विचार या सुझाव कि यह नकदी हमारे द्वारा रखी गई थी या संग्रहीत की गई थी, पूरी तरह से बेतुका है।”
उन्होंने कहा कि यह बताया जाना कि कोई व्यक्ति स्टाफ क्वार्टर के पास या ‘आउटहाउस’ में खुले, आसानी से सुलभ और आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले स्टोररूम में नकदी जमा करेगा, “अविश्वसनीय और अविश्वसनीय” है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय के समक्ष रखे अपने पक्ष में उन्होंने यह भी कहा कि यह एक कमरा (स्टोर रूम) है, जो उनके रहने के स्थान से पूरी तरह से अलग है और एक चारदीवारी उनके रहने के क्षेत्र को उस बाहरी घर (स्टोर रूम) से अलग करती है।
नकदी बरामद होने के आरोप के संबंध में उन्होंने कहा, “मैं एक बार फिर स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरे घर के किसी भी व्यक्ति ने कमरे में जली हुई मुद्रा देखने की सूचना नहीं दी है।”
उन्होंने कहा कि वास्तव में, यह इस बात से और पुष्ट होता है कि जब अग्निशमन कर्मियों और पुलिस के घटनास्थल से चले जाने के बाद हमें स्टोर रूम वापस की गई तो वहां कोई नकदी या मुद्रा नहीं थी। इसके अलावा हमें मौके पर की गई किसी भी बरामदगी या जब्ती के बारे में सूचित नहीं किया गया।”
न्यायमूर्ति वर्मा ने बार-बार कहा कि उनके परिवार के किसी भी सदस्य, पीएस या घरेलू कर्मचारियों को तथाकथित आधी जली हुई मुद्रा नहीं दिखाई गई।
मौके पर कथित रूप से मिली मुद्रा को हटाने के आरोप के संबंध में उन्होंने कहा, “केवल एक चीज जिसे हटाया गया वह मलबा और वह चीज थी जिसे वे बचाने योग्य मानते थे,वह अभी भी घर में मौजूद है और उसे आवास के एक हिस्से में अलग रखा हुआ देखा जा सकता है।”
शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खन्ना ने विवाद सामने आने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति उपाध्यक्ष को इस मामले में रिपोर्ट देने को कहा था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश के पत्र के जवाब में 21 मार्च को न्यायमूर्ति उपाध्याय ने कहा, “मेरे द्वारा की गई जांच में प्रथम दृष्टया बंगले में रहने वाले लोगों, नौकरों, माली और सीपीडब्ल्यूडी कर्मियों (यदि कोई हो) के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के कमरे में प्रवेश या पहुंच की संभावना नहीं दिखती। तदनुसार, मेरी प्रथम दृष्टया राय है कि पूरे मामले की गहन जांच की आवश्यकता है।”
न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति उपाध्याय की इसी रिपोर्ट के आधार पर अगला कदम उठाते शनिवार 22 मार्च 2025 को तीन विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की थी।
उच्चतम न्यायालय की ओर से शनिवार रात जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश ने समिति के गठन का आदेश दिया, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश सुश्री अनु शिवरामन शामिल होंगी।
विज्ञप्ति में आगे कहा गया है, “फिलहाल दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपने के लिए कहा गया है।”
न्यायमूर्ति वर्मा के नई दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर आग की यह घटना 14 मार्च को रात करीब 11.30 बजे हुई। उस समय वह घर पर नहीं थे।
बताया जाता है कि आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों और पुलिस को एक कमरे में कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिली।
दिल्ली उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध न्यायमूर्ति वर्मा के व्यक्तिगत विवरण के अनुसार, उका जन्म 6 जनवरी, 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी कॉम (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्हें 8 अगस्त, 1992 को एक वकील के रूप में नाम दर्ज किया गया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता के रूप में उन्होंने संवैधानिक, श्रम और औद्योगिक विधानों, कॉर्पोरेट कानूनों, कराधान और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित मामलों को संभालने से संबंधित क्षेत्रों में वकालत की। वह 2006 से पदोन्नति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विशेष अधिवक्ता थे। उन्होंने मुख्य स्थायी अधिवक्ता का पद भी संभाला। 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।