नयी दिल्ली – उच्चतम न्यायालय ने शत प्रतिशत इलेक्ट्रोनिक मतदान मशीनों (ईवीएम) में मतदाता द्वारा जांची गयी मतदान की कागजी प्रति (वीवीपैट) की गणना कराने की व्यवस्था का निर्देश दिये जाने की मांग को लेकर दायर एक याचिका पर सोमवार को चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया।
फिलहाल आयोग द्वारा हर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में बिना किसी पूर्व विचार के पांच-पांच ईवीएम मशीनों में वीवीपैट लगाने की व्यवस्था है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने आयोग को नोटिस जारी करने के साथ इसी तरह की याचिका को एसोसएिशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका के साथ रखे जाने के आदेश दिए।
संबंधित याचिका में चुनाव आयोग के उस दिशा निर्देश को भी चुनौती दी गयी है जिसमें वीवीपैट की पुष्टि का सत्यापन बारी बारी से किए जाने की व्यवस्था है जिससे मतदान के सत्यापन में देरी होती है। याचिका में कहा गया है कि यदि हर विधानसभा क्षेत्र में मतगणना के लिए और अधिक कर्मचारी लगाकर वीवीपैट की पुष्टि साथ साथ करा दी जाए तो यह काम पांच छह घंटे में हो सकता है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सरकार ने चौबीस लाख वीवीपैट खरीदने के लिए पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किए है लेकिन अभी करीब केवल बीस हजार वीवीपैट सेट की पर्चियों की पुष्टि करायी जाती है।
याचिका में कहा गया है कि कई विशेषज्ञ इस विषय में कई प्रश्न उठा चुके है और ईवीएम तथा वीवीपैट के मतों में बड़ी संख्या में विसंगतियों की सूचनाएं विगत में आती रही है। याचिका में उच्चतम न्यायालय से मांग की गयी है कि ईवीएम के वोट का मिलान वीवीपैट की पर्ची के साथ कराया जाए। वीवीपैट की पर्चियों की पुष्टि बारी बारी से कराने के आयोग के अगस्त 2023 के दिशा निर्देश को निरस्त किया जाए। आयोग को निर्देश दिया जाए कि वो मतदाताओं को वीवीपैट की अपनी पर्ची को मतदान के बाद एक अलग मतपेटी में डालने की अनुमति दे तथा आयोग वीवीपैट मशीन के शीशे को पारदर्शी रखे और मतदान करते समय उसकी बत्ती इतने समय तक जलती रही कि मतदाता अपने मत की कागजी रिकार्डिग को आराम से देख सके और उस पर्ची को फाड़कर अलग पेटी में डाल सके।