मुजफ्फरनगर। गौशाला, नदी रोड स्थित श्री मदनानंद वानप्रस्थ आश्रम में रविवार को श्रीमद्भागवत कथा के सातवें और अंतिम दिन वृंदावन से पधारे कथा व्यास आचार्य श्री धर्मेन्द्र उपाध्याय जी महाराज ने कथा की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण के भजनों से की।
आचार्य धर्मेन्द्र उपाध्याय जी ने भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर उन्हें सौंपने, सुभद्रा हरण, और सुदामा चरित्र की कथा सुनाई।
सुदामा चरित्र का भावुक प्रसंग:
कथा व्यास ने बताया कि मित्रता निभाने की सच्ची सीख श्री कृष्ण और सुदामा के मिलन से मिलती है। सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारका पहुंचे। द्वारपालों ने उन्हें भिक्षुक समझकर रोका, लेकिन जब उन्होंने कहा कि वे कृष्ण के मित्र हैं, तो द्वारपाल ने जाकर भगवान श्री कृष्ण को सूचना दी।
जैसे ही श्री कृष्ण ने सुदामा का नाम सुना, वे “सुदामा-सुदामा” पुकारते हुए तेजी से द्वार की ओर दौड़े और अपने प्रिय सखा को गले से लगा लिया। दोनों मित्रों के इस भावुक मिलन को देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग अचंभित रह गए। भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को अपने राजसिंहासन पर बैठाया और कुबेर का धन देकर उनका जीवन संवार दिया।
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आचार्य धर्मेन्द्र उपाध्याय जी महाराज ने कहा, “जो भक्त श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। जब-जब भक्तों पर विपदा आती है, प्रभु उनका तारण करने अवश्य आते हैं।”
इस भावुक क्षण पर किसान चिंतक कमल मित्तल और किसान नेता राजीव बालियान ने कहा कि सुदामा और भगवान श्री कृष्ण का संवाद कथा का सबसे हृदयस्पर्शी प्रसंग रहा।
श्रीमद्भागवत कथा के सफल आयोजन में सुशील शर्मा, दीपेंद्र मलिक, दिनेश बंसल, मोहित मलिक और आशीष शर्मा आदि का विशेष सहयोग रहा।