समाज में उन्नति केवल भौतिक साधनों के संचय से नहीं होती। विशेषज्ञों का कहना है कि सत्य और न्यायपूर्वक किए गए श्रम से अर्जित धन का सही उपयोग ही वास्तविक प्रगति है।
विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि अनाधिकार, छल-कपट या बेईमानी द्वारा धन, कोठी या बंगले बनाना केवल भौतिक ऐश्वर्य की वृद्धि है, इसे उन्नति नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि अपने और परिवार के लिए आवश्यक व्यय के बाद शेष धन का दीन-दुखी और असहाय लोगों की सेवा में प्रयोग करना ही सच्ची उन्नति है।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि वस्त्रों का भंडार होने के बावजूद यदि पड़ोस में कोई विधवा या वस्त्रहीन व्यक्ति है, जिसे समाज में जाने का साहस नहीं होता, तो ऐसे समय में उसकी मदद करना परमात्मा की प्रसन्नता का साधन है। उन्होंने चेताया कि परमार्थ भावना और परपीड़ा के प्रति संवेदनशीलता के बिना कोई भी व्यक्ति सच्चे कर्मयोगी और परमात्मा का कृपालु पात्र नहीं बन सकता।
समाजसेवकों का मानना है कि व्यक्तिगत भौतिक सुख के साथ-साथ सामाजिक दायित्व निभाना ही मानव जीवन की वास्तविक सफलता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।