मुजफ्फरनगर-2007 में सपा के राज में शुरू हुई द्वारका सिटी की परियोजना कोई भी सरकार रही हो, लगातार बढ़ती रही है और हाल ही में भाजपा की सरकार में तो इतना बड़ा घोटाला इस कंपनी ने कर दिया है कि मुस्लिम वक्फ की मस्जिद के लिए सुरक्षित की गई जमीन भी अपने नाम लीज करा ली है। लीज में भी शासनादेशों की धज्जियाँ उड़ा दी गयी है और उससे भी मजे की बात यह है कि उस जमीन को भी प्लॉटिंग करके बेचने के लिए दर्शा दिया है जबकि वक्फ की लीज की जमीन किसी भी दशा में बेची या खुर्दबुर्द नहीं की जा सकती है।
21 मई 2005 को सपा की तत्कालीन सरकार में नगर विकास सचिव जेएस मिश्रा के हस्ताक्षर से एक शासनादेश जारी हुआ था जिसमे नगरीय क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश के माध्यम से आवासीय योजनाओं के लिए भूमि अर्जन में विकास की नीति बनाई गई थी जिसके बाद ही मुजफ्फरनगर में द्वारका सिटी की परियोजना बननी शुरू हुई थी। यहाँ पहले आवास विकास की आवासीय योजना बनाने का प्रस्ताव था लेकिन बाद में निजी डेवलेपर से विकसित कराने की योजना बना ली गयी और आवास विकास की योजना आने का प्रचार करके शहर के सफेदपोशों ने शेरनगर और बीबीपुर के ग्रामीणों से उनकी ज़मीन आनन-फानन में औने पौने दाम पर हड़प ली थी।
उस समय नियम था कि अधिकतम 5 भागीदार मिलकर ही इस तरह की आवासीय योजना बना सकते हैं और उनके पास कम से कम 5 वर्ष का अनुभव भी होना जरूरी था, लेकिन सत्ता की हनक के चलते द्वारका सिटी बनाने वाली कंपनी द्वारका बालाजी को निजी विकासकर्ता के रूप में मंजूरी दे दी गई जबकि दोनों ही शर्तों में यह कंपनी सफल नहीं होती थी।
उस समय आबंटन के अभिलेख में विकासकर्ता को 20% भवन और भूखंड वास्तविक रूप से आर्थिक दृष्टि से दुर्बल एवं अल्प आय वर्ग के लाभार्थियों को विक्रय किए जाना निर्धारित किया गया था। शिकायतकर्ता गुंजन गुप्ता के मुताबिक 360 भूखंड आवंटित किए जाने थे लेकिन बाद में इस कंपनी के लोगों ने शासनादेश का उल्लंघन करके केवल 280 भूखंड ही निर्धारित किए थे। इस मामले को रॉयल बुलेटिन ने दो दिन से प्रमुखता से प्रकाशित किया और हंगामा मचा तो मुज़फ्फरनगर विकास प्राधिकरण के सचिव आदित्य प्रजापति ने आज ही गुंजन गुप्ता को अपने कार्यालय बुलाकर जानकारी दी है कि अब उन्हें नए नक़्शे में बढाकर 480 कर दिया गया है।
शिकायतकर्ता गुंजन गुप्ता ने जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी समेत प्रदेश सरकार को की गई अपनी शिकायत में यह दस्तावेज भी लगाए हैं कि इस कंपनी ने भारत सरकार की अधिसूचना का भी उल्लंघन किया है। केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की 18 फरवरी 2020 की अधिसूचना के मुताबिक शॉपिंग मॉल, आवासीय भवन, होटल, रेस्टोरेंट या सराय की स्थापना और चलाने के लिए अधिकतम 30 वर्ष की अवधि तक पट्टा आबंटित किया जा सकता है। पट्टे की जमीन बेची या खुर्दबुर्द नहीं जा सकती है लेकिन इस कंपनी ने 1 सितंबर 2021 को उपनिबंधक सदर प्रथम अनिरुद्ध कुमार यादव के यहां जब यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की 1890 वर्गमीटर जमीन का पट्टा अपने नाम कराया तो पट्टे में 30 साल से अधिक का लीज एग्रीमेंट करा लिया है।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दिलशाद खान वारसी द्वारा किए गए इस एग्रीमेंट मे लिखा है कि 5 हज़ार रुपये महीने के किराए पर वक्फ की यह लगभग 3 बीघे ज़मीन कंपनी को दे दी जाती है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि जमीन किसी भी कीमत पर बेची नहीं जा सकती है लेकिन द्वारका सिटी बनाने वाली भाजपा नेता गौरव स्वरुप की इस कंपनी ने वक्फ की जमीन की भी प्लॉटिंग कर दी है।
मुजफ्फरनगर के सदर तहसील के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक खसरा संख्या 72 जो ग्राम बीबीपुर में मस्जिद के दो मंजिला भवन के लिए रिकॉर्ड में दर्ज है। द्वारका सिटी कंपनी ने मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण और रेरा से स्वीकृत कराये नक्शे में वक्फ बोर्ड की लीज की इस जमीन को प्लॉटिंग करने का स्पष्ट उल्लेख किया है जबकि यह कानून का सरासर उल्लंघन है। देखे रिकॉर्ड-
मस्जिद की जमीन को प्लॉटिंग करने के लिए दाखिल किए गए नक्शे में इस जमीन को गुलाबी रंग से दर्शाया गया है जिसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि गुलाबी रंग से दर्शाई गई जमीन भविष्य में खरीदी जाएगी जबकि वक्फ बोर्ड के कानून के मुताबिक वक्फ की कोई जमीन किसी भी दशा में कभी भी बेची नहीं जा सकती है इसलिए सरकार को गुमराह कर यह कंपनी लगातार फर्जीवाड़ा कर रही है और मस्जिद की जमीन भी निजी लाभ के लिए बेचने के लिए वेबसाइट पर दर्शा रही है। देखे खसरा नंबर 72 का नक्शा –
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी मैत्री रस्तोगी ने भी इस मामले को गंभीर मानते हुए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को पूरे प्रकरण से अवगत करा दिया है। मैत्री रस्तोगी ने मुख्य कार्यपालक अधिकारी को समस्त विवरण से अवगत कराते हुए इस मामले में आवश्यक कार्यवाही का अनुरोध किया है।
बीजेपी नेता गौरव स्वरुप का पूरे प्रकरण के बारे में कहना है कि जो ज़मीन द्वारका सिटी में सरकार की है उसके बदले सरकार को उतनी ज़मीन दूसरी जगह देने का प्रस्ताव दे दिया गया है, जो राजस्व विभाग में लंबित है। दरअसल द्वारका सिटी में जो लगभग साढ़े 16 बीघा से ज़्यादा ज़मीन एसडीएम सदर की जांच में सरकारी भूमि पकड़ में आ गयी है, उसके बाद द्वारका बालाजी ने एक प्रस्ताव सरकार को दिया है कि इसके बदले वे इतनी ही भूमि जगह देने को तैयार है। यह प्रस्ताव अभी शासन में लंबित है और कंपनी को उम्मीद है कि वे अपने पैसे और जुगाड़ के बल पर इसे करा लेंगे।
इस बारे में प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बताया कि इस तरह का कानून तो है लेकिन इस मामले में ऐसे किसी मार्ग को बदला नहीं जा सकता जो किसी अन्य का संपर्क मार्ग हो और इस प्रकरण में वक्फ की लीज पर दी गयी ज़मीन के भी दो संपर्क मार्ग है और लीज की वह ज़मीन कभी कंपनी को बेची नहीं जा सकती है इसलिए इस कॉलोनी को इस कानून का लाभ नहीं मिल सकता है।
इस मामले में एमडीए भी गड़बड़ी की जद में है क्योंकि वक्फ से द्वारका सिटी ने वर्ष 2021 में ज़मीन लीज पर ली है जबकि एमडीए ने 2011 में ही कॉलोनी का नक्शा पास कर दिया था जिस समय इस ज़मीन पर कंपनी का कोई क़ानूनी हक़ भी नहीं था। जानकारों के मुताबिक इस तरहे के नक़्शे पास करने में तहसील से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी लिया जाना ज़रूरी था जिसे भी नहीं लिया गया था इस तरह से कॉलोनी का पास नक्शा ही अवैध है।ये भी पढ़े-
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