टमाटर
पके लाल टमाटर में विटामिन ए, बी और सी काफी मात्रा में पाया जाता है। यह कब्जियत को दूर करता है और शीघ्र हजम हो जाता है। पके टमाटर का स्वाद खट्टा मीठा होता है। शरीर के लिए तो यह मूल्यवान पोषक तत्व है। इसके सेवन से खून में रक्तकण बढ़ते हैं। पके टमाटर भोजन के साथ लेने से रूचि उत्पन्न होती है। इसके रस से तन-मन को ताजगी मिलती है।
टमाटर का रस सगर्भा और प्रसूति के पश्चात् स्त्रियों को सेवन करने से शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। स्त्रियों के विभिन्न रोगों में इसका रस रामबाण है। कम वजन वाले यदि भोजन के साथ प्रतिदिन पके टमाटर खायें तो दीर्घकालावधि में वजन बढऩे लगता है।
पके टमाटर के रस में पुदीना, जीरा और अन्य मसाले डालकर उबालने से अत्यन्त स्वादिष्ट चटनी बनती है। पके टमाटर के टुकड़े उबालकर बनाई हुई चटनी भोजन के साथ खानी चाहिये। पके टमाटर का रस निकालकर इसमें अदरक और नींबू का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है। पके टमाटर का रस सुबह-शाम पीने से भोजन में नमक का उपयोग कम करने से शरीर की चमड़ी पर होने वाले लाल चकत्ते, चमड़ी में शुष्कता, खाज-खुजली, छोटे-छोटी फुंसियों में लाभ होता है।
पके टमाटर का एक प्याला रस या सूप प्रतिदिन पीने से आंतों में जमा सूखा मल मुक्त होता है और पुरानी कब्जियत को दूर कर देता है। टमाटर के रस में हींग को बधारकर पीने से कृमिरोग में लाभ होता है। सुबह शाम टमाटर के रस का सेवन करने से रतौंधी में लाभ देता है, दृष्टि साफ होती है और आंखों की रोशनी को बढ़ाता है।
छोटे बच्चों को पके टमाटर का ताजा रस दिन में 2-3 बार पिलाने से बच्चे नीरोगी, बलवान और हृष्टपुष्ट बन जाते हैं। टमाटर के रस में चीनी और लौंग का चूर्ण मिलाकर पीने से तृषारोग दूर हो जाता है।
तुरई
तुरई में विटामिन ए, बी और सी मिलता है। यह कडुवी और मीठी दो किस्मों में होती है। कडुवी तुरई भी मीठी तुरई जैसी ही होती है। कभी-कभी मीठी तुरई में बाड़ी में कडुवी तुरई घुलमिल जाती है। मीठी तुरई की धारियों की संख्या 10 और कडुवी तुरई की धारियों की संख्या 8 होती है। इस प्रकार से भी इनकी पहचान की जाती है।
तुरई में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण इसकी सब्जी में तेल अधिक मात्रा में पड़ता है। तुरई शीतल, मधुर, कफ और वायु करने वाली, पित्तनाशक और अग्नि-दीपक है। यह श्वांस, ज्वर, खांसी और कृमि को मिटाती है तथा मलावरोध को दूर कर देती है।
घीया तुरई: नेनुआ
घीया तुरई को नेनुआ भी कहा जाता है। इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह भी तुरई की तरह मीठा और कडुआ दोनों किस्मों में उत्पन्न होता है। कडुवे बीज का नेनुआ कडुवा होता है। मीठे नेनुए की सब्जी और पकौड़ी रूचिकर और स्वादिष्ट होती है।
नेनुए की सब्जी तुरई की सब्जी की अपेक्षा अच्छी होती है। बड़ा नेनुआ शीतल, वातल, अग्निदीपक, कफकारक, दमा, खांसी, बुखार, रक्तपित, वायु और कृमि के रोगों को दूर करता है। इसका सेवन करना अत्यंत लाभदायक माना गया है।
परवल
परवल में विटामिन ए,बी और सी पाया जाता है। इनमें भी दो किस्में होती हैं, मीठा और कडुवा, रंग में भी दो किस्में होती है। भूरे व पतले कटु परवल का क्वाथ विष को उतारता है। सिर के गंजेपन के रोग पर भी इसे लगाया जाता है। कडुवा परवल अपने आप पैदा हो जाता है। कडुवे परवलों को काटकर, कडुवापन निकालकर, करेले की तरह सब्जी बनती है। कड़ुवे परवल चरपरे और गर्म होते हैं। यह रक्तपित्त, वायु, कफ, खांसी, खाज-खुजली, कुष्ठ रोग, रक्तविकार, बुखार आदि को दूर करता है। परवल रोगियों और निर्बल लोगों के लिए सुन्दर पथ्य है।
-इंदीवर मिश्र