Sunday, May 12, 2024

पहले आलिम बनें बाद में इंजीनियर और डॉक्टर, तभी मिलेगी असली मंजिल- मौलाना मदनी

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देवबंद। देवबंदी मसलक के मुस्लिमों के इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारूल उलूम देवबंद के प्रबंधकों ने संस्था में शिक्षा प्राप्त कर रहे उन छात्रों को तगड़ा झटका दिया है जो संस्था के छात्रावासों में रहते हुए संस्था में मजहबी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और साथ ही नगर में खुले हुए कैरियर बनाने वाले प्रशिक्षण केंद्रों पर जाकर अलग से कोर्स कर रहे हैं।

 संस्था के चांसलर (मोहतमिम) मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी बनारसी और सदर मुदर्रिस मौलाना अरशद मदनी ने आज कहा कि पिछले काफी समय से यह देखने में आ रहा है कि इस संस्था में दीनी तालीम के लिए प्रवेश पाए और छात्रावासों में रहने वाले छात्र नगर देवबंद में विभिन्न स्थानों पर खुले कैरियर बनाने वाले कोर्स में जाकर अलग से पढ़ाई कर रहे हैं। जिससे उन छात्रों का ध्यान भटकता है और जिस दीनी शिक्षा को प्राप्त करने के उद्देश्य से वे यहां आए हैं उससे भटक रहे हैं।

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संस्था के दोनों उच्चाधिकारियों ने कहा कि दारूल उलू में अच्छे दर्जे की इंग्लिश की पढ़ाई होती है। दो साल का कंप्यूटर कोर्स है और इस संस्था में सभी विषय गणित, भूगोल,  इतिहास,  हिंदी,  इंग्लिश की पढ़ाई दी जाती है। इस संस्था में बुनियादी शिक्षा इस्लाम धर्म की होती है और जो छात्र देशभर से यहां आते हैं उनका मुख्य लक्ष्य भी दारूल उलूम से प्रमाणिक इस्लामिक शिक्षा ग्रहण करना होता है। देश और दुनिया में अपनी इसी खूबी के कारण दारूल उलूम देवबंद का महत्व भी है। मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि दारूल उलूम अपने यहां दी जाने वाली शिक्षा में कोई किसी तरह का बदलाव नहीं कर रहा है। पहले की तरह यहां पढ़ाई जारी रहेगी। इंग्लिश का विभाग नहीं तोड़ा जा रहा है और ना ही उसकी पढ़ाई पर रोक लगाई जा रही है।

रोक सिर्फ संस्था से बाहर खुले हुए प्रशिक्षण केंद्रों पर जाकर अलग से पढ़ाई करने पर रोक लगाई जा रही है। सदर मुदर्रिस मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमारे इस फैसले को लेकर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि दारूल उलूम ने अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की पढ़ाई पर रोक लगा दी हैं यह बात सही नहीं है। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मजहबी शिक्षा पूरी करने के बाद दारूल उलूम के छात्र डाक्टरी पढ़े, इंजीनियरिंग पढ़े, आईएस में जाए, आईपीएस में जाए उसकी उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार रहेगा। मदनी ने कहा कि मजहबी पढ़ाई थोड़ी मुश्किल है। जो सबक  छात्रों को कक्षाओं में पढ़ाया जाता है उसे याद करने के लिए उन्हें अलग से समय चाहिए होता हैं और देखने में यह आ रहा है कि उस दौरान हमारे अनेक छात्र बाहर खुले प्रशिक्षण केंद्रों पर दूसरी शिक्षा ग्रहण करने चले जाते हैं जिससे होता यह है कि परीक्षाओं में कम अंक लाते हैं या फिर फेल हो जाते हैं।

संस्था का ऐसे में यह पहला दायित्व है कि यहां के छात्र यहां की शिक्षा को पूरी निष्ठा और समर्पण के भाव से ग्रहण करने का काम करें और जब यहां उनकी पढ़ाई पूरी हो जाए तो वे कुछ भी करें। दोनों उलेमाओं ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इन नए निर्देशों का उल्लंघन करने वाले छात्रों को दारूल उलूम से निकाल दिया जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि संस्था के छात्र इन निर्देशों का पूरी तरह से पालन करेंगे।

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