वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ़ कर देने पर राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया के शुरू होते ही देश के सभी विरोधी दल और अपने को सेकुलर कहने वाले बुद्धिजीवियों ने यह कहना शुरू कर दिया कि मंदिर तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से बन रहा है.इसके पीछे उनका कहने का आशय यह है कि राम मंदिर निर्माण के पीछे संघ, भाजपा, विश्व हिंदू परिषद एवं अन्य हिंदूवादी शक्तियों का कोई योगदान नहीं है
तकनीकी तौर से ऊपरी तौर से देखने से यह बात सच मालूम पड़ती है कि राम मंदिर का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के चलते हुआ है लेकिन यह आधा सच है जो झूठ से भी ज्यादा खतरनाक है। गौर करने की बात यह है कि यदि वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार ना आई होती तो क्या राम मंदिर का निर्माण संभव होता ? इतना ही नहीं, वर्ष 2017 में योगी सरकार उत्तर प्रदेश में न आई होती तो राम मंदिर का निर्माण और भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा इतना आसानी से क्या संभव होती ? प्रत्येक समझदार व्यक्ति और राम भक्त का यही उत्तर होगा कि यदि ऐसा ना होता, तो राम जन्मभूमि पर राम मंदिर अब भी एक सपना ही होता।
लोगों की याददाश्त में अच्छी तरह होगा कि जो लोग राम मंदिर निर्माण के पीछे न्यायालय को श्रेय देने की बात कर रहे हैं, उनका स्वत: का रवैया राम मंदिर निर्माण को लेकर क्या था? उन्होंने जन्मभूमि में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरी ताकत से अवरोध पैदा किया. राम मंदिर निर्माण को लेकर संघर्ष करने वाली शक्तियों को इन तत्वों ने पूरी ताकत से सांप्रदायिक, अलगाववादी और घोर मुस्लिम विरोधी घोषित कर दिया था।
बराबर यह कहा गया कि प्रमाण दो कि राम यही पैदा हुए थे। ऐसे ऐसे कुतर्क भी किए गए कि लोगों को मंदिर की नहीं, रोटी की जरूरत है। इसीलिए राम मंदिर की जगह अस्पताल यूनिवर्सिटी से लेकर शौचालय तक बनाने की बातें कही गई। सर्वोच्च न्यायालय में यूपीए सरकार ने हलफनामा तक दिया कि राम समेत रामायण के सभी पात्र काल्पनिक है। यहां तक कहां गया कि इसके चलते देश में गृह युद्ध का खतरा है।
लोगों की याददाश्त में यह भी अच्छी तरह से होगा कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने के बाद भाजपा की उत्तर प्रदेश समेत तीन सरकारों को केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था. इतना ही नहीं, वहां पर फिर से बाबरी मस्जिद बनाने की बातें की जा रही थी. राम मंदिर निर्माण रोकने के लिए जाने माने वकील कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में यहां तक कहां था कि राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय को 2019 के चुनाव के पश्चात फैसला देना चाहिए। इसके पीछे दो निहितार्थ थे. पहले तो यह कि किसी तरह से राम मंदिर निर्माण को टाला जाए, जैसा कि पूर्व में तरह-तरह के प्रयासों से टाला जाता रहा। दूसरी महत्वपूर्ण सोच जो इसके पीछे थी कि कहीं इसका फायदा भाजपा को लोकसभा के चुनाव में मिल जाए, जबकि भाजपा एवं हिंदुत्ववादी शक्तियों के लिए राम मंदिर आस्था और राष्ट्र के गौरव से जुड़ा प्रश्न था।
असलियत में राम मंदिर निर्माण का विरोध करने के पीछे कांग्रेस पार्टी एवं दूसरी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का आशय मात्र मुस्लिम वोट बैंक को बचाए रखने का है। उनको ऐसा लगता था कि हिंदू तो जाति- पाति में विभाजित है. मुसलमान तो थोक में वोट देते हैं, इसलिए वोट राजनीति की दृष्टि से राम मंदिर निर्माण का विरोध करना ज्यादा सही कदम होगा। राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने के लिए कांग्रेस जन बीच-बीच में यह भी कहते रहते हैं कि वर्ष 1986 में विवादित ढांचे में जहां रामलला विराजमान थे, वहां का ताला तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुलवाया था जबकि यह बात सच्चाई से कोसो दूर है, विवादित ढांचे का ताला जज कृष्ण मोहन पांडे के आदेश से खोला गया था।
इसी तरह से कांग्रेस पार्टी द्वारा राम मंदिर शिलान्यास का भी श्रेय लेने का प्रयास किया जाता है, जबकि यह बात भी सच्चाई से बहुत दूर है. अंदरूनी सूत्रों से जो खबरें आई, उसके अनुसार कांग्रेस पार्टी दोनों ही कदमों के पक्ष में नहीं थी। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उक्त कार्यक्रम का बहिष्कार करते हुए भी संपूर्ण विश्व के हिंदुओं द्वारा राम मंदिर के प्रति भारी उत्साह को देखते हुए कई कांग्रेस जनों ने यह साबित करने का प्रयास किया कि वह राम विरोधी या हिंदू विरोधी नहीं है. कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने बेंगलुरु में एक निजी राम मंदिर का उद्घाटन किया तो दूसरे कई कांग्रेसियों ने भी जगह-जगह धार्मिक आयोजनों में भाग लिया, लेकिन यह तो संगठित हिंदू समाज के चलते हो रहा है, कोई राम निष्ठा के चलते नहीं।
कांग्रेस पार्टी वोट बैंक की राजनीति के चलते किस हद तक हिंदू विरोधी है, यह इसी से समझा जा सकता है कि वर्ष 1991 में केंद्र की सत्ता में रहते हुए कांग्रेस पार्टी प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट लेकर आई जबकि न्यायालय में जाने का किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है, लेकिन कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ पूरी तरह हिंदुओं के हक में न जा पाए, इसके लिए प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट के तहत हिंदुओं के लिए न्यायालय के दरवाजे भी बंद करने के प्रयास किए गए।
अपने मुस्लिम परस्ती के चलते दिनों दिन सिकुड़ती और सिमटती जा रही कांग्रेस पार्टी स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अभी भी यह कहने को तैयार नहीं है कि कम से कम कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए और अंत में रहा सवाल राम मंदिर के संदर्भ में न्यायालय के फैसले का, तो यह बताना उचित होगा कि समान नागरिक संहिता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय 1992 से कहता आ रहा है कि इसे देश में लागू होना चाहिए, बावजूद अभी तक यह देश में लागू नहीं हो पाया है. इस तरह से यह कहा जा सकता है यदि केंद्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार न होती तो शायद सर्वोच्च न्यायालय अभी तक फैसला ही न कर पाता और यदि फैसला हो भी जाता तो इसे जमीन पर उतारना बहुत ही दुष्कर कार्य होता। इसीलिए तो देश के राम भक्त नागरिक इतिहास की इस महानतम उपलब्धि का श्रेय मोदी और योगी को मुक्त कंठ से दे रहे हैं।
-वीरेंद्र सिंह परिहार