जीते रहने का नाम जीवन नहीं है, घिसटते रहने का नाम भी जीवन नहीं है। सच तो यह है कि आज इंसान जीवन जीना ही भूल गया है।
जीवन जियो तो सीना तान के जियो, किन्तु जिन्होंने नैतिक मूल्यों को महत्व नहीं दिया, अपने कर्तव्यों को पालन में अवहेलना की, जिन्होंने अपने कुकर्मों के कारण अपना आत्मबल समाप्त प्राय: कर दिया है, वें सीना तान कर कैसे जी सकते हैं।
धर्म-मर्यादा और लोक-कल्याण की भावना एवं नैतिक मूल्यों के साथ जीने वालों के लिए तो यह वसुन्धरा स्वर्ग के समान है, वें ही समाज में सम्मान के अधिकारी होते हैं। उनका आत्मबल भी चरम पर होता है। वें स्वयं को कभी असफल व्यक्ति भी नहीं समझते, दुख की परिभाषा भी वह नहीं जानते। वें प्रत्येक परिस्थिति में सुख का अनुभव करते हैं, जिसे सुख कहा जाता है, वें उस अर्थ को समझते हैं, जानते हैं।
चोर, दुराचारी, बेईमान, देशद्रोही चाहे धनवान तो कितना भी हो जाये, किन्तु उनमें आत्मबल का अभाव होता है, वह कितना भी बड़ा और सम्मानीय दर्शाने का प्रयास करें, किन्तु उसके भीतर जो चोर बैठा है वह उसके चेहरे पर उसके भीतर के यर्थार्थ को बयां कर देता है।