नयी दिल्ली – उच्चतम न्यायालय ने सरकारी भूमि पट्टा समझौते की अनिवार्यता के तहत गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने में विफलता को लेकर गुरुवार को इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के रिकॉर्ड की संयुक्त जांच के आदेश दिये।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने निरीक्षण के दायरे को रेखांकित करते हुए निर्देश जारी किया और विशेष जानकारी मांगी, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या अस्पताल के लीज डीड को समाप्त होने के बाद नवीनीकृत किया गया है और यदि हां, तो किन नियमों और शर्तों के तहत।
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पीठ ने आगे सवाल किया कि यदि लीज को बढ़ाया नहीं गया है, तो सरकारी स्वामित्व वाली भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए क्या कानूनी उपाय किये गये हैं।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कुल बिस्तरों की संख्या की पुष्टि करने तथा कम से कम पिछले पांच वर्षों के बाह्य रोगी फुटफॉल रिकॉर्ड का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भेजी जानी चाहिए। न्यायालय ने पिछले पांच वर्षों में राज्य प्राधिकरणों की सिफारिशों के आधार पर इनडोर तथा आउटडोर उपचार प्रदान किये गये गरीब रोगियों की संख्या का विवरण प्रस्तुत करने को कहा।
न्यायालय ने अस्पताल को जांच में पूर्ण सहयोग करने का भी निर्देश दिया तथा इसके प्रबंधन को उपर्युक्त मुद्दों पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति दी।
सुनवाई के दौरान पीठ ने अस्पताल प्रबंधन को कड़ी फटकार लगाई और चेतावनी दी कि यदि वह अपने पट्टे के दायित्वों से बचना जारी रखता है, तो अस्पताल का प्रशासन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को हस्तांतरित किया जा सकता है।
न्यायालय ने चिंता जतायी की कि बिना लाभ और बिना हानि के मॉडल पर संचालन के बजाय यह अस्पताल एक व्यावसायिक उद्यम बन गया है, जो वंचित रोगियों की पहुँच को प्रभावी रूप से नकार रहा है।
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न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वे गहन समीक्षा करें तथा पिछले पांच वर्षों में अस्पताल में इलाज कराये गये आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मरीजों की संख्या का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
अस्पताल के वकील ने न्यायालय को बताया कि 26 फीसदी शेयरधारक के रूप में दिल्ली सरकार ने भी अस्पताल के राजस्व से लाभ कमाया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस पर टिप्पणी की कि ऐसी स्थिति ‘सबसे दुर्भाग्यपूर्ण’ है।
वर्ष 1994 में दिल्ली के सरिता विहार में 15 एकड़ भूमि को इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड को 01 रुपये प्रति माह की मामूली दर पर पट्टे पर दिया गया था। इस परियोजना में दिल्ली सरकार की 26 फीसदी हिस्सेदारी थी। पट्टे के
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समझौते के अनुसार अस्पताल को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के 1/3 इनडोर रोगियों तथा 40 प्रतिशत आउटडोर रोगियों को मुफ्त उपचार प्रदान करना था। आरोप है कि अस्पताल इन दायित्वों का पालन करने में विफल रहा, जिसके कारण अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ (दिल्ली इकाई) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर की। वर्ष 2009 में उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अस्पताल अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है और गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किये। अस्पताल प्रबंधन ने दावा किया कि यह एक वाणिज्यिक इकाई के रूप में संचालित है, और उसने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष न्यायालय के समक्ष चुनौती दी।