कितना बड़ा परिवर्तन जमाने में आया है। इस परिवर्तन की गति बहुत तेज है। बहुत अधिक समय नहीं बीता जब लोगों में मान-मर्यादा का ख्याल था, आंखों में शर्म थी। अब तो मर्यादा और शर्म बीते समय की बात हो गई है।
सुनते आये हैं कि घर समाज और देश की व्यवस्था दो बातों से व्यवस्थित रहती है- भय और शर्म। शर्म से तात्पर्य लोक-लाज तथा मान-मर्यादा का ख्याल। अब घरों में न छोटे-बड़ों की शर्म, न किसी बात का भय। इसी कारण घरों में इतने झगड़े और अशान्ति है। समाज की व्यवस्था भी इसी कारण बिगड़ रही है कि न किसी का भय रहा और न ही लोकलज्जा, कि कोई क्या कहेगा।
पहले बड़े बुजुर्गों से भय भी लगता था, मर्यादाओं और लोकलाज का ख्याल भी रहता था। इसी कारण समाज में सब कुछ ठीक-ठाक था।
कुछ दशक पहले यदि किसी राजनीतिज्ञ की गलती पकड़ी जाती थी अथवा किसी मंत्री के विभाग में अनियमितता पर उंगली उठती थी तो मंत्री तुरन्त त्यागपत्र दे देते थे। अब तो नेता ठीठ हो गये हैं। करोडों के घोटाले करके भी त्यागपत्र तो बड़ी बात है, थोड़ी सी लज्जा भी महसूस नहीं करते।