गाज़ियाबाद। एक समय देशभर में अपने खांडसार उद्योग के लिए प्रसिद्ध रहा गाजियाबाद का फरीदनगर कस्बा आज बदहाली, भ्रष्टाचार और सरकारी उपेक्षा का शिकार है। 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कानपुर नगर के साथ फरीदनगर को भी नगर पंचायत का दर्जा मिला था। जहां कानपुर आज प्रदेश का दूसरा सबसे समृद्ध नगर निगम बन चुका है, वहीं फरीदनगर बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।
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कभी फरीदनगर कस्बा खांड व्यापार का गढ़ था, लेकिन आज यहां व्यापारियों का पलायन हो चुका है। कारण है – बदहाल सड़कें, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, शिक्षा की कमजोर स्थिति और सबसे अहम – पीने के पानी जैसी बुनियादी जरूरतों की किल्लत। कस्बे की सड़कों की हालत ऐसी है कि बरसात में कीचड़ और गर्मी में धूल के गुबार से लोगों का जीना मुश्किल हो गया है।
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स्थानीय निवासियों और वर्तमान सभासदों ने नगर पंचायत में व्याप्त भ्रष्टाचार को कस्बे की बदहाली का प्रमुख कारण बताया है। उनका आरोप है कि नगर पंचायत अध्यक्ष श्रीमती रेशमा ज़ुबैर कुरेशी कार्यालय नहीं आतीं, और उनके परिजनों द्वारा नगर पंचायत के कार्य मनमाने तरीके से संचालित किए जा रहे हैं।
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सभासदों का कहना है कि नवनिर्मित दुकानों का आवंटन बिना बोर्ड प्रस्ताव के चहेते लोगों को कर दिया गया है। वहीं, हाल ही में बनी सड़कों की हालत कुछ ही महीनों में खराब हो गई है, लेकिन ठेकेदारों और कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि कस्बे के अधिकांश मोहल्लों में पीने के पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। लोग या तो हैंडपंप पर निर्भर हैं या फिर निजी टैंकर मंगवाने को मजबूर हैं। कई बार जिला प्रशासन से शिकायतें की गईं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
भ्रष्टाचार के खिलाफ नगरवासियों ने जिला अधिकारी गाजियाबाद से भी लिखित शिकायत की है। शिकायत में न केवल भ्रष्ट अधिकारियों व ठेकेदारों की जांच की मांग की गई है, बल्कि नगर पंचायत अध्यक्ष और उनके परिजनों द्वारा किए जा रहे कथित गलत कार्यों की जांच की भी मांग की गई है।
शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि नगर पंचायत अध्यक्ष के परिजन किसी भी शिकायत पर विरोध करने वालों को डराते-धमकाते हैं, जिससे आम नागरिक प्रशासन से बात करने में भी हिचकते हैं।