मेरठ। मेरठ के भावनपुर में हुए कांवड़ हादसे का कारण क्या रहा इसकी जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। वहीं आज मृतकों के शव परिजनों को सौंपे जाएंगे। एक साथ छह मौतों से जहां गांव में कोहराम मचा है वहीं तकरीबन 10 कांवड़िये अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। हादसे की जांच के लिए मजिस्ट्रेटियल जांच बैठा दी गई है।
मेरठ के भावनपुर थाना क्षेत्र के राली चौहान गांव में शनिवार रात को दर्दनाक हादसे का मंजर जिसने भी देखा वहीं सहम गया। जल चढ़ाकर घर लौट रहे डाक कांवड़ियों की ट्रैक्टर -ट्राली 11 हजार केवी की हाईटेंशन लाइन से टकरा गई। करंट लगने से छह कांवड़ियों की मौत हो गई। मृतकों में दो सगे भाई और चाचा-भतीजा शामिल हैं। सभी मृतक राली चाैहान के रहने वाले हैं। बुरी तरह से झुलसे 15 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। वहीं देर रात को ही घटना से गुस्साए कांवड़ियों ने रोड पर जाम लगा दिया। विद्युत विभाग के अधिकारियों को सस्पेंड करने की मांग की। कांवड़ियों का कहना था कि बिजली आपूर्ति बंद नहीं किए जाने से हादसा हुआ। जिलाधिकारी दीपक मीणा ने छह कांवड़ियों की मौत की पुष्टि करते हुए हादसे के कारणों की जांच के लिए मजिस्ट्रेटियल जांच बैठा दी है।
राली चौहान में हुए हादसे में बिजली निगम के अधिकारियों की लापरवाही सामने आ गई। हादसे के बाद ग्रामीण चीख-चीखकर आरोप लगा रहे थे कि बिजली विभाग की वजह से हादसा हुआ है। ग्रामीणों का कहना था कि डाक कांवड़ गांव में पहुंचने से पहले जेई से शटडाउन मांगा गया था। लेकिन जेई ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। जब कई बार फोन किया तो जेई ने मोबाइल स्विच ऑफ कर लिया। हालांकि कुछ देर के लिए बिजली की सप्लाई बंद जरूर थी। लेकिन फिर से सप्लाई आ गई। ग्रामीणों के यह आरोप कितने सही है इसका पता तो जांच के बाद ही चलेगा, लेकिन कारण जो भी रहा हो कई परिवारों ने अपनों को खो दिया।
ग्रामीणों का कहना है कि 11 हजार केवी लाइन करीब दो साल पहले एक एक्सपोर्ट कंपनी के लिए खींची गई थी। उस समय ग्रामीणों ने विरोध किया थी। जिसकी वजह यह थी कि इस रास्ते के एक तरफ पहले से 440 वोल्ट की लाइन थी और दूसरी तरफ 11 हजारी लाइन खींच दी गई। ग्रामीणों का कहना था कि रास्ते के दोनों तरफ बिजली की लाइन होने से कभी भी कोई हादसा हो सकता है। तब बिजली निगम के अधिकारियों ने कई ग्रामीणों के खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा डालने का मामला भी दर्ज करा दिया था। यदि उस समय ग्रामीणों की सुन ली गई होती तो शायद यह हादसा नहीं होता।