Monday, April 28, 2025

वर्तमान समय में लड़ाई विचारों की है हथियारों की नहीं- पदम सिंह

मेरठ। वर्तमान समय में लड़ाई विचारों की है हथियारों की नहीं। अपने विचारों को विजय बनाने के लिए मर्यादा भी तय करनी होगी। किसी को परास्त करना विजय होना नहीं है क्योंकि विजय प्राप्त करने के लिए किसी को समाप्त करना होता है। हमें किसी को मारना नहीं है। आजकल दो चीजें चल रही है नेरेटिव और विमर्श , नेरेटिव बनाने वाले वर्तमान में परेशान हैं। यह बात तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल और मेरठ चलचित्र सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित नवांकुर फिल्म महोत्सव में मुख्य वक्ता पदम सिंह क्षेत्र प्रचार प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कही।

 

मुज़फ्फरनगर में जंगलों में चोरों का आतंक, चार ट्यूबवैल को बनाया निशाना, चुराया कीमती सामान

[irp cats=”24”]

 

उन्होंने कहा कि हमें तय करना होगा कि बुरा और अच्छा क्या है। फिल्में भावना और संवेदना जोड़ने का काम करती हैं। यह लंबे समय तक हमे प्रभावित करती है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अपनी फिल्मों में भारत और भारतीयता संस्कृति दिखनी चाहिए मेरा नागरिक कर्तव्य क्या है मुझे पता होना चाहिए सामाजिक पारिवारिक कर्तव्य भी पता होना चाहिए आने वाला समय भारत का है भारत का दर्शन अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के बीच जाना चाहिए। उन्होंने फिल्म छावा का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच संवाद दिखाया गया है, जिसमें संभाजी स्वराज की परिभाषा बताते हैं।

 

 

मुज़फ्फरनगर में होटल रेडियन्स गोल्ड के बाहर से कार में चोरी, पुलिस ने 5 लाख का माल किया बरामद

यह हमें सिखाता है कि “हमें अपनी पहचान और विचारधारा को दृढ़ता से स्थापित करना चाहिए। इसी तरह, फिल्मों के माध्यम से हमें यह तय करना चाहिए कि हमारा भारत कैसा दिखे और किस दिशा में आगे बढ़े।नवापुर फिल्म महोत्सव की विशिष्ट अतिथि अनीता चौधरी ने कहा कि 2013 के बाद विचारों में बदलाव आया है क्योंकि फिल्म समाज का दर्पण होती है यही कारण है कि 2013 के बाद समाज में बड़ा बदलाव आया व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली फिल्मों ने समाज पर बड़ा प्रभाव छोड़ा उन्होंने कहा कि क्रिएटिविटी में दो ही प्रकार होते हैं सकारात्मक और नकारात्मक इन दोनों प्रकारों को हमें खुद चुनना होगा भविष्य वर्तमान में आप क्या सुनते हैं उस पर निर्भर होता है फिल्मों का प्रेजेंटेशन समाज को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि 1980 के दशक के बाद से फिल्मों की गुणवत्ता में गिरावट देखी गई।

 

भाकियू (अराजनैतिक) में उथल-पुथल, ब्लॉक अध्यक्ष पर अवैध उगाही के आरोप, दर्जनों कार्यकर्ताओं ने दिया त्यागपत्र

 

 

हमें फिल्में देखने के लिए केवल एक दर्शक बनकर नहीं जाना चाहिए, बल्कि अपना दृष्टिकोण और विचार लेकर जाना चाहिए। यदि हम केवल वही देखते हैं जो फिल्में दिखाना चाहती हैं, तो हम उनके नैरेटिव के शिकार हो सकते हैं। इसलिए, हमें फिल्मों को एक जिम्मेदार दर्शक की तरह देखना चाहिए और अपने विचारों को मजबूत रखना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर संगीता शुक्ला ने पुरस्कृत फिल्मों को बधाई देते हुए कहा कि पुरस्कृत फिल्में बनाने वाले आगे जाने चाहिए उनको बड़ा मंच मिले यह हमारी जिम्मेदारी है।

 

 

 

 

 

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, साउंड डिजाइनिंग और फिल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए, ताकि मेरठ को एक फिल्म सिटी के रूप में विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे व्यक्तित्वों को बुलाया जाना चाहिए, जो विकसित भारत की बात करें और युवा पीढ़ी को सही दिशा दिखाएं। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने बताया कि नवांकुर फिल्म फेस्टिवल की यात्रा 2018 में शुरू हुई थी। इस फेस्टिवल का उद्देश्य नवोदित फिल्म निर्माताओं को एक सशक्त मंच प्रदान करना है, जहाँ वे अपनी क्रिएटिविटी को दर्शकों तक पहुँचा सकें। इस पहल को सफल बनाने के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और मेरठ चलचित्र सोसाइटी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

80,337FansLike
5,552FollowersFollow
151,200SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय