-डॉ. अनिल कुमार निगम
उत्तर प्रदेश में ऊधम सिंह, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह और सुंदर भाटी से भी बड़े माफिया मौजूद हैं। उनका नाम न तो पुलिस फाइलों में है और न मीडिया की फेहरिस्त में। फिलहाल उत्तर प्रदेश शासन ने उनको सूचीबद्ध भी नहीं किया है। उनकी बेनामी संपत्ति कई हजार करोड़ों में है।
जी हां, मैं बात कर रहा हूं ऐसे माफिया के बारे में जो अदृश्य है पर सबसे ज्यादा मालदार और ताकतवर वही है। ये ऐसे राजनेता और ब्यूरोक्रेट हैं, जिन्होंने प्रदेश में माफिया का संरक्षण और संवर्धन किया। इसके बदले में उन्होंने न केवल अपनी तिजोरियां भरीं, बल्कि हजारों करोड़ों रुपये की नामी एवं बेनामी अकूत संपत्ति इकट्ठा कर ली।
आज इनमें से ही कई नेता माफिया के खिलाफ कार्रवाई होने पर अपनी छातियां पीट रहे हैं। सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जो प्रदेश में सक्रिय माफिया की सूची जारी की है, क्या महज उसके खात्मे के बाद प्रदेश आतंक मुक्त हो जाएगा? सवाल यह भी है कि क्या कोई व्यक्ति बिना राजनीतिक और अफसरशाही के संरक्षण के माफिया बन सकता है? अगर नहीं तो फिर सबसे बड़े अदृश्य माफिया पर उदासीनता कैसी?
हाल ही में अतीक अहमद, अशरफ, असद अहमद और गुलाम मोहम्मद के मारे जाने के बाद प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर विपक्षी नेताओं ने जमकर हंगामा बरपाया। इनके मारे जाने के बाद प्रदेश पुलिस ने 61 माफिया की एक नई सूची तैयार की है। इनमें शराब कारोबारी, अवैध खनन कारोबारी भी हैं।
सहायक पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार (कानून एवं व्यवस्था) का कहना है कि माफिया से 500 करोड़ रुपये की संपत्ति जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। इस सूची में ऊधम सिंह, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह और सुंदर भाटी के अलावा सुनील राठी, राजन तिवारी, गुड्डू सिंह, सुभाष ठाकुर, सुधाकर सिंह, देवेंद्र सिंह, पूर्व सांसद रिजवान जहीर, हाजी इकबाल, अनिल दुजाना, सुनील राठी और अनुपम दुबे आदि के नाम शामिल हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि माफिया को मिट्टी मे मिला देंगे और प्रदेश को माफिया मुक्त बना कर रहेंगे। आंकड़ों के अनुसार, 20 मार्च 2017 से अब तक पुलिस और बदमाशों के बीच 10,933 मुठभेड़ हो चुकी हैं। इनमें 183 कुख्यात अपराधी और 13 पुलिस कर्मचारी मारे जा चुके हैं। इन मुठभेड़ों में 23 हजार से अधिक अपराधियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। मुख्यमंत्री की प्रदेश को माफिया मुक्त बनाने की मंशा का स्वागत किया जाना चाहिए।
लेकिन सवाल यह है कि आज जितने अपराधी माफिया बन चुके हैं, वे एक दिन की उपज नहीं हैं। इनका साम्राज्य (अवैध कारोबार, रंगदारी, दबंगई, अवैध कब्जा इत्यादि) राजनेताओं के संरक्षण और अधिकारियों की शह पर ही मजबूत हुआ है। यह बात भी सोलह आने खरी है कि अधिकारियों एवं राजनेताओं ने यह काम मुफ्त में नहीं किया होगा। उन्होंने इसके बदले मोटी कमाई की है। कहने का आशय है कि असली माफिया तो वे ब्यूरोक्रेट एवं राजनेता हैं, जिन्होंने ऐसे लोगों को पल्वित और पुष्पित किया।
जिन अधिकारियों और नेताओं की सक्रियता एवं कार्यकाल में माफिया ने अपने कारोबार को चमकाया, ऐसे लोगों की सूची बनाकर उनकी संपत्तियों की स्कैनिंग की जानी चाहिए। बहुत कम ऐसे आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं जिनकी बेनामी संपत्तियों को अब तक खंगाला गया है। सपा कार्यकाल में एक चर्चित आईएएस अधिकारी और बसपा की सरकार प्रदेश के पूर्वमंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की बेनामी संपत्तियों की जांच में करोड़ों रुपये की हेराफेरी की बात पहले ही सामने आ चुकी है।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात रहे अनेक ऐसे कथित अधिकारी हैं, जिनके चेहरों से नकाब उठना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जनता पुरजोर अपील कर रही है कि प्रदेश को माफिया मुक्त बनाने के संकल्प पूर्ति के लिए उसकी जड़ों में मट्ठा डालना होगा। यह जड़ें (अधिकारी) कौन हैं, यह किसी से छुपा नहीं है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)