Wednesday, May 8, 2024

ट्रक और बस ड्राइवरों की हड़ताल, सही या गलत ?

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हमारा संविधान हमें सरकार  के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार देता है। हड़ताल करना भी एक तरह का अधिकार है, क्योंकि इस तरह से सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर करना है, लेकिन हमारा यह संविधान अधिकार के साथ कर्तव्य की बात भी करता है। आज हम जितने भी धरना, प्रदर्शन और हड़ताल देखते हैं, वो सरकार पर दबाव बनाने हेतु जनता को परेशान करने की कोशिश दिखाई देते हैं। तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली के रास्तों को एक साल से ज्यादा बंद करके रखा गया, जिसके कारण आम जनता को बहुत परेशानी हुई। किसानों का समर्थन करने वालों ने आन्दोलन के कारण करोड़ों लोगों को हुई परेशानी की बात कभी नहीं की। ऐसे ही थोड़े-थोड़े दिनों में पंजाब में हाईवे और रेलवे ट्रैक जाम करने की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन इसके कारण लाखों लोगों को होने वाली परेशानी कभी चर्चा का मुद्दा नहीं बनती है।

ऐसा लगता है कि इस देश में लोकतंत्र के नाम पर भीड़ तंत्र हावी होता जा रहा है। आम जनता की गर्दन दबाकर सरकार को झुकाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है । हिट एंड रन कानून का विरोध करने के लिए ट्रक/बस ड्राइवरों ने हड़ताल शुरू कर दी है। इस हड़ताल के कारण आम जनता को परेशानी होनी शुरू हो गई है। अगर हड़ताल चलती रहती तो जनता की परेशानी बढ़ती जाएगी। जीवन जीने के लिये जरूरी सामानों की कमी होती जायेगी और इससे महंगाई भी बढ़ेगी।

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जब जनता परेशान होगी तो वो सरकार की तरफ देखेगी कि वो क्या कर रही है। सवाल यह है कि जिस कानून का विरोध किया जा रहा है, उससे क्या सिर्फ ट्रक और बस ड्राइवरों को ही परेशानी होने वाली है? इस कानून का असर तो उन सभी चालकों पर पड़ेगा, जो कोई भी वाहन चलाते हैं फिर वो चाहे कार चालक हों या दोपहिया चालक। सवाल फिर यही है कि सिर्फ ये लोग ही हड़ताल क्यों कर रहे हैं?

कल्पना कीजिये एक पिता चुपचाप फुटपाथ पर अपने घर जा रहा है और अचानक तेज गति से आता कोई वाहन उसे कुचलता हुआ चला जाता है और बाद में ड्राइवर पकड़ा जाता है। ड्राइवर को पुलिस जमानत पर छोड़ देती है और उस गरीब पिता की लाश उसके घर पहुंचती है। रात को ड्राईवर अपने बच्चों के साथ मजे से खाना खाकर सो जाता है और दूसरी तरफ एक विधवा और उसके मासूम बच्चों की जिंदगी उजड़ जाती है। एक गरीब आदमी अपनी जिन्दगी खो देता है।

नये कानून में हिट एंड रन मामले में दोषी पाये जाने पर अपराधी को दस साल कैद और सात लाख का जुर्माना किया जा सकता है, जबकि पुराने कानून में ज्यादा से ज्यादा दो साल की कैद दी जा सकती थी। पुराने कानून में आरोपी के पकड़े जाने पर उसे तत्काल जमानत मिल जाती थी, लेकिन नये कानून में जमानत लेना आसान नहीं होगा।

कानून की सख्ती को देखते हुए ड्राइवरों का विरोध सही दिखाई देता है। सवाल पैदा होता है कि क्या यह कानून सिर्फ  ट्रक और बस चालकों के लिये ही है। ड्राइवरों का यह कहना है कि वो जानबूझकर दुर्घटना नहीं करते हैं। कोई ड्राइवर नहीं चाहता कि कोई उसकी गाड़ी के नीचे आकर मरे। यह भी एक सच है कि ज्यादातर ड्राइवर इतने गरीब होते हैं कि उनके लिए सात लाख रुपये जुर्माना भरना आसान नहीं होगा। दुर्घटना में दोषी पाये जाने पर दस साल की कैद बहुत ज्यादा दिखाई देती है। अब सवाल उठता है कि क्या सरकार यह कानून ट्रक और बस ड्राइवरों के खिलाफ लाई है?

देखा जाये तो सड़कों पर चलने वाले वाहनों में ट्रकों और बसों से कहीं ज्यादा संख्या कारों की है। यह कानून तो दोपहिया वाहनों पर भी लागू होगा क्योंकि पैदल चलने वाले तो इनसे टकरा कर भी मारे जाते हैं। फिर वही बात आती है कि सिर्फ  ट्रक और बस ड्राईवर ही क्यों परेशान हैं, जबकि सबसे ज्यादा चिंता कार चलाने वालों को होनी चाहिए।  हिट एंड रन के मामले भी सबसे ज्यादा कार चालकों द्वारा ही किये जाते हैं।

कहा जा रहा है कि यह कानून गरीबों के खिलाफ है क्योंकि ट्रक और बस चालक गरीब परिवार से होते हैं, लेकिन कोई इसका जवाब देगा कि सड़कों पर मारे जाने वाले भी ज्यादातर गरीब परिवार के होते हैं। अगर एक ड्राइवर को सजा देने से उसका परिवार परेशान होता है तो एक गरीब के मरने से उसका पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है।  सवाल उठता है कि क्या सरकार गरीबों को सड़को पर कुचलकर मारने की छूट ड्राइवरों को दे दे? क्या हिट एंड रन कानून को सख्त बनाने की जरूरत नहीं है और गरीबों को मारने की खुली छूट सही है?

वास्तव में यह कानून सिर्फ  हिट एंड रन मामलों को लेकर बनाया गया है और वो भी उन मामलों पर लागू होता है, जिसमें आरोपी के द्वारा लापरवाही और तेज गति से वाहन चलाने का आरोप लगाया जाता है। दूसरी बात यह है कि कानून में दस साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है। जज मामले को देखते हुए कितनी भी कम सजा दे सकता है फिर वो चाहे 6 महीने की जेल ही क्यों न हो।

ड्राइवरों का कहना है कि अगर वो दुर्घटना के बाद घटनास्थल पर रुके रहते हैं तो जनता उनके साथ मारपीट करती है और उनकी जान को भी खतरा होता है। वैसे सरकार ऐसे मामलों के लिए मॉब लिंचिंग का कानून लेकर आई है, जिसमें अपराधी को मौत की सजा भी दी जा सकती है। कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर ड्राइवर को लगता है कि घटनास्थल पर रुकना उसके लिए ठीक नहीं है तो वो वहां से भाग सकता है। ड्राइवर को नजदीकी थाने में जाकर समर्पण करना होगा  अथवा पुलिस को घटना तथा अपने बारे में पूरी सूचना देनी होगी। ऐसा करने पर कानून लागू नहीं होगा।

यह कानून उन लोगों के लिये लाया गया है जो सड़क दुर्घटना करने के बाद मौके से भाग जाते हैं। उस स्थिति में पीडि़त को मरने के लिये सड़क पर छोड़ दिया जाता है और जिसकी जान बच सकती थी, उसे अपनी जिन्दगी से हाथ धोना पड़ता है। सिर्फ  ऐसे ही लोगों पर यह कानून लागू होता है।

देखा जाए तो अगर ड्राइवर घटनास्थल से भागने के बावजूद पुलिस को सूचित कर देता है तो पीडि़त की जान  बचाई जा सकती है। इस तरह यह कानून ड्राईवर और पीडि़त दोनों के हित में है, क्योंकि पुलिस को सूचित करने के बाद ड्राइवर भी कानून से बच जाता है। वैसे भी यह कानून सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्देशों को देखते हुए बनाया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ड्राइवर द्वारा लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए किसी की मौत हो जाती है और वो वहां से भाग जाता है तो उसके ऊपर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। विदेशों में भी ऐसे अपराधों के लिये सख्त कानून बनाए गए हैं।

यह कानून अभी लागू नहीं किया गया है और सरकार का कहना है कि वो इस कानून को  लागू करने से पहले मोटर यूनियन से विचार-विमर्श करेगी। जो लोग इस कानून को गरीबों के खिलाफ बता रहे हैं, उन्हें सड़क दुर्घटनाओं के कारण हर वर्ष मरने वाले डेढ़ लाख लोगों की चिंता भी करनी चाहिए। उन्हें इसकी भी जांच करनी चाहिए कि जो लोग इन सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं उनकी आर्थिक हालत कैसी होती है? फिर सवाल तो यह भी है कि क्या ट्रक और बस ड्राइवर यही सोचते हैं कि उन्हें किसी को भी मारकर चुपचाप अपने घर जाने की इजाजत होनी चाहिए। वो चुपचाप अपने घर आकर सो जायें और दूसरी तरफ एक पूरा परिवार बरबाद हो जाये।

अपनी जान बचाने के लिये घटनास्थल से भागना ठीक हो सकता है लेकिन पुलिस को सूचना देने में क्या परेशानी है। कानून बनने के बाद जरूरत होने पर संशोधन किये जाते हैं और अगर जरूरत हुई तो इस कानून में भी संशोधन किया जा सकता है। हड़ताल करके जनता को परेशान करना ठीक नहीं है । सरकार से बात मनवाने के लिये मोटर यूनियन दूसरे तरीके भी अपना सकती है। हड़ताल करना आखिरी रास्ता होना चाहिए।[ यह लेखक के निजी विचार है, संपादक का सहमत होना ज़रूरी नहीं है]
-राजेश कुमार पासी

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